Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 23
________________ रिटणेमिचरिउ महु विणासु तुह अयसहो मरणउं अज्जु-वि तुहुँ पइट्ठ कहो सरणउं ८ घत्ता जाम ण साहणु अच्छहइ पट्टविउ समर-सरु वाणें। ताम माए वरि केत्तहे-वि तिण्णि ओसरहुं विमाणे॥ [१०] तं णिसुणेवि वयणु अणिरुद्धं सासय-कित्ति-समागम-लुढे मंभीसियउ वे-वि कहो संकहो पर-वलु खयहो जाइ महु एक्कहो सूरु व सूरू सूरु चिरु होतउ अंधयविट्ठि पुट्ठि ण देंतर सावलेउ वसुएउ महारणे को ण भगु तें रोहिणि-कारणे - ४ हरि-साहसु तुम्हेहिं विवुज्झिउ सहुँ पत्थिवेण जेण जगे जुज्झिउ मयरकेउ अच्चंतु वहुज्जउ कुसुमवाणु उच्छुहणु-वि दुजउ णंदणु तासु कासु आसंकमि णिम्मलु णउ हरिवंसु कलंकमि जसु लक्खह-मि ण सेउ वलग्गइ एक्कु वाणु तहो केत्तहो लग्गइ ८ घत्ता मा चिंतवहु अणाडहउ भुय-दंडहिं वइरि हणेसमि। रह-गय-तुरय-णराहिवइ ताई [जि] पहरणइं करेसमि ॥ [११] ताम पंचचामरु वसुचंदउ मोहण-थंभण-मारण-विजउ तो परिहविय-पुरंदर-लीहहो जम-कयंत-कलिकाल-समाणहो देव देव देवाह-मि दुजउ तेण तुम्हारी दुहिय विणासिय ताम थोव-कोवग्गि-सणाहें पेसिय पहरण-पाणि पधाइय वेढिउ एक्कु अणेएहिं जोहेहिं उसए सखग्गु दिण्णु वसुणंदउ थिउ रण-मणु वल-विक्कम-तिजउ सोणियपुरि-परिपालण-सीहहो आरक्खिएहिं कहिज्जइ वाणहो अच्छइ एक्कु जुवाणु रणुज्जउ णलिणि व कुंजरेण विद्धंसिय विजाहर विज्जाहर-णाहें दप्पुब्भड केत्तहि-मि ण माइय रह-गय-तुरय-विमाणारोहेहिं ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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