Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 16
________________ तिणवइमो संधि तहे कारणे तेण जि साहिएण णिय एत्थहो देवे भावणेण अवरोप्परु वट्टइ संधि-कज्जु तो वारिय वंधु जणद्दणेण आराहण-मंताराहिएण अवहरेवि सीय जिह रावणेण को जाणइ होसइ काइं अज्जु गउ गयउरु एक्के संदणेण पत्ता टोटके दोमइ कुढे लग्गु सहुं पंडवेहिं अणिंदिएहिं । मणु णाई पय? पेरिउ पंचहिं इंदिएहिं ।। [१४] आराहिउ सुत्थिउ सुरवरिंदु उत्तारिय तेण महा-समुद्दु णिय तेत्तहिं जेत्तहिं जण्णसेणि हरि-जमल-जुहिट्ठिल-भीमसेण धाइय पहरण-किण-कढिण-पाणि घण-घट्टण-घग्घर-घोर-वाणि सारंगु लइउ दामोयरेण करे फेरिय लउडि विओयरेण णउलेण पदरिसिउ कुंत-मग्गु सहएवं कड्डिउ मंडलग्गु तव-सुएण सत्ति समरुज्जएण विणिवारिउ णवर धणंजएण कुरुवाएं खंडव-डामरेण वहु-तालुयवम्म-खयंकरेण दुजोहण-धण-परियत्तणेण संसत्तग-सेण्ण-विहत्तणेण ४ घत्ता लइ अच्छहु सव्व भुवणुच्छलिय-महागुणेण । मई एक्के इत्थु किं ण पहुच्चइ अज्जुणेण ॥ आउरिउ संखु पयट्ट पत्थु महुमहेण-वि पूरिउ पंचयण्णु तं वाणेहिं लइउ कइद्धएण विहलंघलु पर-वल-दिण्ण-भंगु गयणत्थे कण्हें णयर-सारु गय-घायहिं भीमें मंदिराई उदंड-कंड-कोयंड-हत्थु सण्णहेवि पधाइड वइरि-सेण्णु पिय-परिहव-वेहाविद्धाएण पइसारिउ पुरवरे वइरियंगु पाडिउ पाएण पओलि-दारु चूरियइं कियइं पक्कंदिराई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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