________________ रतिसार कुमार जी! यह आदमी कौन है, सो तो मैं नहीं जानता; पर यह अभी इस नगरके गुणी पुरुषों के पूछने पर कह रहा था, कि इस पोटली में एक ऐसा श्लोक-रत्न है, जो सभी विद्वानोंसे पूजित होने योग्य है और तीनों लोकोंका उपकार करने में समर्थ है। बड़ी लाचारीमें पड़कर मैं आज इसे बेचने चला हूँ। दाम पूछने पर इसने कहा, कि इसका मूल्य लाख मुहरें हैं। जब इसने ऐसा कहा, तब अचम्भेके मारे चारों ओरसे लोग आआकर इसके पास इकट्ठे होने लगे और उस श्लोकको देखनेकी उत्कण्ठा प्रगट करने लगे, जिसका मूल्य इतना बढ़ा-चढ़ा हुआ था। लोगोंकी यह उत्कण्ठा और उत्सुकता देखकर इसने कहा, कि इसको मूल्य देकर ख़रीदे विना कोई नहीं देख सकता। इस पर सब लोग इसकी दिल्लगी उड़ाने और कहने लगे, कि दुनियामें ऐसा कोई बछियाका ताऊ नहीं है, जो चीज़ देखे बिना उसका दाम दे डाले। इसके उत्तरमें इसने कहा, कि भाई ! यह सौदा बड़ा ही अनमोल है। जैसे सभी चीज़ोंके. नमूने दिये जाते हैं , पर सर्व-रोग-नाशक, मृत्यु-भय-हारी अमृतका मुफ्त नमूना नहीं मिलता, वैसे ही जिसके पाठ-मात्रसे ही संसारका सार मिल जाता है, उस अमूल्य श्लोकको मैं तुम्हें योंही कंसे दिखा दूँ ? तुम लोग स्वयं बुद्धिमान हो, मेरा श्लोक देखते ही उसे कण्ठस्थ कर लोगे, फिर मेराश्लोक कौन ख़रीदेगा ? इसी प्रकार लोगोंने लाख कहा; पर इसने किसीको अब तक वह श्लोक नहीं दिखलाया और चारों ओर फेरी लगा रहा है।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust