________________ पाचवा परिच्छेद संघातन पाँच हैं:-औदारिक संघातन, वैक्रिय संघातन, आहारक संघातन, तेजस संघातन और कार्मण संघातन / येश भेद और वर्ण, गन्ध,रस और स्पर्श-इन चारों भेदोंके बदले पाँच वर्ण (कृष्णवर्ण, नीलवर्ण, रक्तवर्ण, पीतवर्ण, शुक्लवर्ण); दो गन्ध ( सुरभिगन्ध, दुरभिगन्ध ); रस पाँच ( तिक्त रस, कटुरस,कषायरल, आमरस,मधुररस); आठ स्पर्श(कर्कश स्पर्श, मृदुस्पर्श गुरु स्पर्श, लघुस्पर्श, शीत स्पर्श, उष्ण स्पर्श, स्निग्धस्पर्श और रुक्ष स्पर्श)-थे वीस भेद गिनने चाहिये। इस प्रकार 67 के साथ 26 भेद और बढ़ जानेले 63 भेद हो जाते हैं। ऊपर बन्धनके 5 भेद बतलाये गये हैं। किसी-किसी ग्रन्थमें प्रकारान्तरसे इसके पन्द्रह भेद गिनाये गये हैं, जिलसे कुल 103 भेद होते हैं। - जैसे चित्रकार सुन्दर-सुन्दर चित्र अडित करता है, वैसेही नाम-कर्मकीप्रकृतिके उक्ष्यसे जीव तरह-तरहके रूप आदि धारण करता है, जिससे इस कर्मकी उपमा चित्रकारसे दी जाती है। इसकी उत्कृष्ट स्थिति 20 कोटानुकोटि सागरोपमकी हैं। ____७-गोत्र-कर्मके दो भेद होते हैं: -१उच्च गोत्र और 2 नीच गोत्र / जैसे कुम्हार मिट्टीके पिण्डसे घड़ा बनाता है, जो मडलकार्यके लिये स्थापित होकर पूजित होता है तथा शराब आदि रखनेसे निन्दित हो जाता है, वैसेही उच्चगोत्र-कर्मके उदय होनेसे जीव विशिष्ट जाति आदि गुणोंसे बद्धि-हीन होनेपर भी पूजित होता है और नीचगोत्र-कर्मके उदयसे बुद्धिमान् होनेपर भी जीव P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust