Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 83
________________ रतिसार कुमार अङ्गोपाङ्ग ये हैं-शीर्ष, पृष्ठभाग, हृदय, उदर, उरुद्वव, करद्धय, ये आठों अङ्ग हैं। इनके साथ लगे हुए घुटने और अँगुली आदि उपाङ्ग हैं ! इनमें जो रेखा, नख, केश आदि हैं, वेही अङ्गो पार हैं। इनमें जो आदिके तीन शरीरके होते हैं, इससे उनके तीन भेद हैंऔदारिक अङ्गोपाङ्ग, वैक्रिय अङ्गोपाङ्ग और आहारक अङ्गोपाङ्ग। * संघयण छः प्रकारके होते हैं:-वनऋषभनाराच संघयण, ऋषभनाराच संघयण, नाराच संघयण, अर्द्धनाराच संघयण, कीलिका संघयण, सेवार्त संघयण / / संस्थान छः हैं:-समचतुरस्त्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान, सादिसंस्थान, वामन संस्थान, कुञ्ज संस्थान, हुण्डक संस्थान, इन छहों संस्थानोंका सम्भव औदारिक शरीरसे है, . औरोंका कम होता है। 1. आनुपूर्वी चार प्रकारकी है:-नरकानुपूर्वी, तियेचानुपूर्वा, मनुष्यानुपूर्वा, और देवानुपूर्वी / . विहायोगति दो हैं:-शुभ विहायोगति और अशुभ बिहायोगति। . . इस प्रकार 35 भेदोंके साथ ऊपर गिनाये हुए 42 मेस जससे लेकर अपयश पर्यन्त 20 भेद तथा वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, उपघात, पराघात, आतप, अगुरुलघ, उच्छवास, उद्योत, निमाण और तीर्थङ्कर ये 12 भेद मिलाकर कुल 67 भेद होते हैं / - बन्धन पाँच प्रकारके होते हैं:-औदारिक बन्धन, वैक्रिय बन्धन, आहारक बन्धन, तेजस बन्धन, और कार्मण बन्धन / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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