Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 87
________________ रतिसार कुमार अधिकार आदि सुख-सम्पत्तिके कारण उपस्थित होनेपर अविवेकी और अभिमानी न बन जाइये ; बल्कि इन सबको पूर्वमें किये हुए, धर्मकृत्योंका फल समझकर ऐले उपकारी धर्मको नहीं भूलते हुए, उसीमें चित्त लगाये रहिये। साथही चारण-मुनिने सुबन्धुको जो श्लोक बतलाया था, उसे भी अपने हृदय पट पर लिख लीजिये। सुपात्रको दिया हुआ दान सौभाग्य देनेवाला, आरोग्य देनेवाला, उत्तम भोगका निधान, गुणोंका स्थान, कान्तिका प्रसारक और वैरिको वशमें ले आनेवाला है। इसी दानके प्रभावसे रतिसार कुमारको भी सुख, सम्पत्ति, कान्ति और पराक्रम आदि विभूतियाँ प्राप्त हुई। यही देख और यही सोचकर कि इन्हींकेले अन्य असंख्य मनुष्योंने भी दानके प्रभावसे संसारके बन्धन काट डाले हैं, आप लोग भी सुकृत्यमें लीन रहते हुए अकृत्यका त्याग करें। इस प्रकार करनेपर आपका यह चरित्र-पठन करना सफल होगा। समाप्त P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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