Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 38
________________ रतिसार कुमार समय रवाना किया। सेनापति भी बहुतसे पैदल सिपाही, रथी और घुड़सवार सैनिकोंके साथ हाथ में खङ्ग लिये बड़े तमक तोव के साथ चले, मानों उन्हें कोई बड़ा भारी किला जीतना हो। सेनापतिके आनेके पहलेही बहुतसे आद. मियोंने कुमारके पास पहुँच कर कहा, कि तुम्हें गिरफ्तार करनेके लिये बहुत बड़ी सेनाके साथ सेनापति चले आ रहे हैं। परन्तु यह समाचार पाकर भी कुमारका एक रोआँ नहीं कम्पित हुआ। थोड़ी ही देर बाद राजाके शूर-वीर सिपाहियोंने कामदेवके उस मन्दिरको ठीक उसी तरह घेर लिया, जैसे कर कर्म आत्माको घर लेते हैं। उन अकड़बेग सिपाहियोंने कुमारको ओर जब टेढ़ी गर्दन करके नज़र फेरी, तब ठीक ऐसाही मालम पड़ा, मानों बहुतले जुगनू सूरजकी ओर देख रहे हों। कुमारको देखतेही सब सिपाही “पकड़ो-पकड़ो" की आवाज़ लगाने लगे। यह कहते हुए वे सब प्रलयकालके पवनके समान बड़े वेगसे कुमारकी ओर दौड़ पड़े। परन्तु मेरु-पर्वतके समान अचल बने हुए कुमारको इससे तनिक भी क्षोभ नहीं हुआ। वे ठीक वैसेही निश्चिन्त रहे, जैसे भड़ौच-नगरके मैदानमें चारों ओर वीर पुरुषोंके शस्त्र चलते रहने पर भी श्रीपालकुमार तनिक भी नहीं घबराते थे, सच है, धीर पुरुषोंका मन सम्पत्ति और विपत्तिमें एकसाही बना रहता है। विपत्ति आनेपर उन्हें तनिक भी मानसिक कष्ट नहीं होता। इसी प्रकार स्थानके त्याग, प्रियाके अनुराग और भयकी प्राप्ति आदिसे भी उस श्लोक-रत्नको सदा स्मरण रखनेवाले कुमारका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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