________________ चौथा परिच्छेद जैसे केवल-झानी तत्काल उत्पन्न हुए कर्मोंका छेदन कर डालता है। कुछ ही क्षण वाद उसके तीरसे मेरा हाथी घायल हो गया। मेरे सारे अस्त्र-शस्त्र बेकार हो गये। तब लाचार मैं मुष्टियुद्ध करनेके ही इरादेसे छलांग मार कर उसके हाथीकी गरदन पर चढ़ बैठा। इतनेमें उसने मुझे उठाकर पत्थरके ढेलेकी तरह दूर फेंक दिया। "इसके बाद उस स्त्रीको लिये हुए उस राजाने मेरे नगरमें प्रवेश किया। इस घोर अपमानसे व्याकुल होकर मैं मृत्युको ही सबसे बढ़कर प्रिय समझने लगा और बार-बार यही मनाने लगा, कि यदि किसी जन्ममें मुझसे कोई पुण्य बन पड़ा हो, तो उसके प्रतापसे अगले जन्ममें मेरा किसी स्त्रीसे सम्पर्क न हो; क्योंकि ये सन्मार्गका भङ्ग करनेवाली हैं। यही मनाता हुआ मैं एक कुएँ में जा गिरा। उस कुएँमें गिरते ही मेरी आत्माने अप-. नेको पहलेकी ही तरह सिंहासन पर बैठा हुआ देखा / युद्धौ क्रोधसे लड़ते हुए मेरे जिन वीरोंने वीर-गति प्राप्त की थी, उन सब घायल और मरे हुए सिपाहियोंको भी मैंने अक्षत शरीरसे अपने पास खड़ा देखा। जो हाथी और घोड़े रणमें मारे गये थे, उनके शब्द भी हस्तिशाला और अश्वशालासे आते सुनाई पड़े। इसके सिवा अन्तःपुरमें वही स्त्री अपनी सखियोंके साथ नित्य नैमित्तिक कार्य करती हुई दिखाई दी। इस प्रकार अद्भुत आश्चर्य देखकर मेरा मन चञ्चल हो उठा। इसी समय अपने मनोहर तेजसे सूर्यको मी मन्द करनेवाला एक देव मेरे सामने प्रकट हुआ। उसे देखते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust