Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 74
________________ DNA पाँचवाँ परिच्छेद केवल-ज्ञानकी प्राप्ति। - :NC.co: स राज्यपर दयामय कुमार रतिसारके बैठते ही वह प्रकार शोभायमान दिखाई देने लगा, जैसे सूर्यके द्वारा आकाश सुन्दर दिखाई देता है / राजा रतिसारने सिंहासन पर बैठते ही नगरमें यह ढिंढोरा फिरवाया, कि इस राज्यके अन्दर रहनेवाला जो कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्यका नाश करेगा, वह राजाका ही ध्वंस करनेवाला समझा जायेगा। राजाकी आज्ञा भङ्ग करनेवाला वध करने योग्य है, इसलिये जो कोई परस्पर द्रोह करेगा, वह राजाका द्रोही समभा जाकर फाँसीपर लटका दिया जायेगा। - इस प्रकार राजा रतिसारके पुण्य-प्रभावसे उस देशके निवासी परस्पर वैर और शत्रुता त्यागकर बड़े अमन-चैनसे दिन बिताने लगे। किसीको किसीसे भय न रहा / राज्यकी सारी स्त्रियाँ शीलवती और पतिव्रता हो गयीं-सभी लोग सदा सच बोलने लगे।चोरोंका तो कहीं नामोनिशान भी न रहा / खेल-कूद करने. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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