Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 51
________________ 42 रतिसार कुमार मनोरथाः' (धन्य पुरुषोंके मनोरथ तत्काल फलीभूत होते हैं) मुनिको देखते ही सुचतुर राजकुमार और उनके चारों मित्रोंने उनसे भोजन करनेके लिये आग्रह किया। यद्यपि राजकुमारके मित्र भूखसे तड़प रहे थे, तथापि अपने मित्रकी उदारता देख, उन्होंने भी मुनि महाराजको भोजन कराने में बड़ा उत्साह दिखलाया और सबके सब कहने लगे, कि ऐसे समय ऐसे सुपात्रके दर्शन भी बड़े भाग्यसे होते हैं, इसलिये इन्हें शीघ्रही भोजन कराना चाहिये। उन लोगोंका यह आग्रह और उत्साह देख, मुनि महाराजने इस आहारको निर्दोष समझकर ग्रहण करना स्वीकार किया। तब कुमार मुनि महाराजके आगे अन्न परोसने लगे। जब वे आधा भोजन मुनिको दे चुके, तब क्षत्रिय-पुत्र शूरने यह मतलब-भरी बात कही,-'कुँअर जी! भूखे मनुष्यों पर आपकी सी दया शायद ही कोई दिखलाता होगा / " उसका मतलब समझकर मुनिने बार-बार नाहीं करनी आरम्भ की, तो भी कुमार विश्वसेनने उन्हें एक मनुष्यका पूरा भोजन खिला दिया। जब वे खा-पीकर लौटने लगे, तब कुमारने उनकी पीठ पर दादका निशान देखा। मुनिको यह रोग हुआ देख, कुमारको इस रोगकी शान्तिको चिन्ता उत्पन्न हुई और उन्होंने मुनिसे वहीं रहनेकी प्रार्थना की। इसके बाद सब मित्रोंने एकही साथ भोजन किया। भोजन करनेके बाद कुमारने वैद्यके लड़केसे मुनिका रोग दूर करनेको कहा। इसके बाद और तीनों मित्रोंने भी उले इस विषयमें उत्साहित किया। राजपुत्र विश्व P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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