________________ चौथा परिच्छेद हुआ और उन्होंने योग धारण करनेके विचारसे अपने इन्द्रके समान प्रतापी पुत्रको बुलवाकर अपनी गद्दीपर बैठाया। जिनके चित्र उनके हृदयपर खिंचे हुए थे, उन अपने चारों मित्रोंके साथ पुण्यात्मा विश्वसेनने बहुत दिनोंतक हस्तिपुरमें राज्य किया। सारी पृथ्वीका ऐश्वर्य भोग करनेके अनन्तर मृत्युको प्राप्त होकर वे पांचों मित्र नवें (आनन्त ) देवलोकमें चले गये। वहाँ भी उनकी मित्रता ज्यों-की-त्यों बनी रही। स्वर्गके समस्त सुखामृतका पानकर पुनः संसारके सुखोंका स्वाद लेनेके विचारसे ही मानों वे फिर संसारमें आ पहुंचे हैं। हे रतिसार कुमार ! उन पांचों मित्रोंमें तुम्हीं तो विश्वसेन हो और तुम्हारा मित्र सुबन्धु उसी क्षत्रिय-पुत्र शूरका अवतार है। जय, वीर और कलाखारके जीव ही क्रमशः सौभाग्यमंजरी, प्रियंवदा और सुताराके रूपमें उत्पन्न हुए हैं। तुम पाँचोंकी वही मित्रता आजतक ज्योंकी-त्यों बनी हुई है। वही पूर्वभवका प्रेम आजतक राज्य कर रहा है। जय, वीर और कलासारको उन मुनिवरको अन्नदान करते समय कुछ मोह हुआ था, इसीलिये वे इस भवमें स्त्री हुए हैं। उन तीनों मित्रोंके मनकी बात जाने विनाही तुमने मुनिको अन्नदान दिया, इसलिये तुमने आहार-अन्तराय-कर्म उपार्जन किया। इसी कारण तुम्हें तीन दिन भूखों रहना पड़ा। जब तुम आधा भोजन मुनिको दे चुके, तब शूरने यह कह कर तुम्हें रोका, कि कुमार! भूखों पर तुम्हारे समान दया शायद ही और कोई करता होगा। इसी मतलब-भरी बातके कहनेके P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust