________________ र रतिसार कुमार मैं वही ताम्रलिप्तिका राजा हूँ, जो कैदी होकर आपके पिताके दरबारमें गया और बन्धनमें पड़कर पृथ्वीपर पड़ा हुआ था। उस समय आपनेही मुझे कैदसे छुड़ाकर ठीक पिताके समान मेरे प्रति आचरण किया था। अब आप जैसे पिताके सामने मेरा राज्य और ऐश्वर्य भोग करना उचित नहीं प्रतीत होता, इसलिये आप कृपाकर मेरे साथ चलें और ताम्रलिप्ति-नगरका राज्य स्वीकार करें।" "कुमारने यह जानकर, कि यह तो वही ताम्रलिप्तिका राजा है, उस पुरुषको अपने पैरोंपरसे उठाकर हर्ष के साथ हृदयसे लगा लिया। इसके बाद जब उस राजाने कुमारले घर-बार छोड़नेका कारण पूछा, तब कुमारने उसे अपना सारा हाल ज्योंका त्यों सुना दिया। इसी समय राजाकी घुड़सवार सेना भी वहाँ आ पहुँची और उसने सब मित्रोंको सुन्दर घोड़ोंपर सवार करा अपने साथ चलनेको कहा। जब सब लोग ताम्रलिप्तिमें आ पहुँचे, तब वहाँके राजाने बड़े आग्रह और आदरके साथ कुमारको अपने सिंहासनपर बैठाया तथा स्वयं छड़ीबरदार बनकर उनके आगे खड़ा हो गया। तदनन्तर उसने अपने सब सेवकोंको राजकुमारको प्रणाम करनेकी आज्ञा दी। उस दिनसे राजकुमार विश्वसेनही वहाँके राजा हो गये और अनेक राजा उनके चरणोंकी सेवा करने लगे। बहुत दिनोंतक वे वहीं रह गये। : "अपने गुप्तचरोंके मुंहसे कुमार विश्वसेनके सारे चरित्र श्रवणकर उनके पिता राजा सुमित्रने सोचा, कि सचमुच कुमार बड़ा ही पुण्यात्मा जीव है। इसके बाद राजाको वैराग्य उत्पन्न P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust