Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 61
________________ चौथा परिच्छेद www जवानी-किसी अवस्थामें क्षणभरके लिये भी जोतप बन पड़े, वही यथार्थ है; क्योंकि यह जीवन ऐसा चञ्चल है, कि कब मृत्यु सिरपर आ घहरायेगी, इसका कोई ठिकाना नहीं है। मनुष्यको आयुका कुछ निश्चय नहीं है, इसीलिये कोई . यह नहीं जानता, कि कब उसकी मृत्यु होगी। इसके सिवा वृद्धावस्थामें मनुष्यको शक्ति नहीं रहती और विना शक्तिके तपस्या नहीं बन आती / इसलिये बुढ़ापेके आसरे तपको मुलतवी कौल रखने जाये ? जो मनुष्य शक्तिके द्वारा होनेवाले कार्योंको वृद्धावस्थामें करना. प्रारम्भ करते हैं,उनकी बुद्धि उनपर श्वेत केशोंके मिससे परिहास करती है। जिस मनुष्यको मृत्युकी सहचरी जरावस्था दबा लेती है, उसकी धर्मबुद्धि फलदायिनी नहीं होती और यह तारुण्य मोह-रूपी मतवाले हाथीको बाँधनेवाला वृक्ष है, इसलिये कुकर्मों की पंक्तिसे शोभायमान यह तारुण्य किस पुरुषको मदसे नहीं भर देता ? जिस उपायसे मेरे विवेक-रूपी सिंहने इस तारुण्य-वृक्षको अपना लीला-स्थान बना लिया है, वह अपूर्व है / इस विषयका एक दृष्टान्त सुनो- ..... ... . _ "सूर्यपुर नामका एक नगर है, जिसमें आस्तिक मनुष्य धर्मराजाके कीड़ा करने योग्य कल्पवृक्षके वनकी शोभा धारण किये हुए हैं। किसी समय उस नगरमें महेन्द्र नामके एक बड़े प्रसिद्ध राजा रहते थे। वे बाहरी और भीतरी दोनों प्रकारके शत्रु ओंको जीतनेवाले शास्त्रों और शास्त्रोंमें बड़े ही निपुण थे उनके एक पुत्र भी था, जिसका नाम चन्द्रयशा था। राजाने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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