Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 66
________________ रतिसार कुमार जैसे सद्गुरु अज्ञानका नाश करनेके लिये तत्पर होते हैं, वैसेही सूर्य अपनी किरणोंके द्वारा अन्धकारका नाश करनेके लिये उदित हो चुके हैं।" . इस प्रकार मुक्तिकी सूचना देनेवाली उपश्रुतिके समान वन्दीजनोंकी वाणी सुनकर मुझे बड़ा ही आनन्द हुआ और मैं शय्या त्याग कर उठ बैठा / उस समय उस जागी हुई स्त्रीने मुझे पहलेसेही जगा जानकर लजाके मारे सिर नीचा कर लिया और कुछ भी नहीं बोली। उस समय मेरा अन्तर्चक्षु अगाध बोधरूपी क्षीर-समुद्र में निमग्न हो रहा था, इसीलिये मैंने भी उसे प्यारसे नहीं पुकारा। इसी समय प्रतीहारीने मेरे सामने आ, मुझे हर्षसे प्रणाम किया और कहा,-'हे देव! मंत्री मतिसागरने कहला भेजा है, कि श्रीमान्के सेवकगण चिरकालसे श्रीमान्के दर्शनोंके लिये उत्सुक हो रहे हैं।' यह सुन, प्रातःकालिक क्रियाओंसे निवृत्ति होकर मैं अपने सेवकोंसे भरे हुए दरबारमें गया। उस समय अपनेको प्रणाम करनेवाले राजाओंको अपनी ओर देखते समय मैंने एकके हाथमें कमल देखा। उसी समय मुझे कमलके समान दृष्टिवाली प्रिया याद आ गयी। इसीसे दरबार में बैट हुए विद्वानोंके अमृतके समान वचनोंकी तर लहरें मारती रहन पर भी प्रियाके विरहसे पीड़ित होनेके कारण मेरे मनमें तनिक भी आनन्द उत्पन्न नहीं हुआ। इसीलिये मैंने ज्योंही अपनी आँखें रनिवासकी तरफ़ फेरी, त्योंही उधरसे एक पुरुष जल्दाजल्दी पैर बढ़ाता हुआ आता दिखाई दिया। उस पुरुषका शरार P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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