Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 50
________________ चौथा परिच्छेद जारहे हैं ? इस प्रकार रो-रोकर अपने हृदयका दुःख प्रकट करने वाले नगर-निवासियोंको दृष्टिमें अन्धकार उत्पन्न करते और उनकी चेतना लुप्त करते हुए कुमार नगरसे बाहर निकल पड़े। उस गुणोंकी पिटारीके समान प्राणोपम प्रिय वीर पुरुषके नगरसे बाहर होतेही लोग आँसुओंकी नदीमें नहाने लगे। बहुतसे नगरनिवासी तो उनके पीछे-पीछे चल पड़े; पर तुरतही राजाके डरके मारे लौट आये-हाँ, राजकुमारके पूर्वोक्त चारों मित्रोंने उनका साथ नहीं छोड़ा-वे उनके साथही चलने लगे। पृथ्वी के जिस भागमें कुमारके चरण पड़ते, वही सूर्यके आगमनसे प्रकाशित पृथ्वीकी तरह अपूर्व शोभा धारण कर लेता था। इधर पृथ्वीके जिस भागको उन्होंने त्याग दिया, वह सारी शोभाओंसे रहित हो गया। / .. "इस प्रकार अनेक देशों और बनोंको पार करते हुए कुमार पांचवें दिन एक नगरके पास आ पहुँचे और एक सरोवरके निकट विश्राम करनेके लिये बैठ गये। इसी समय क्षत्रिय-पुत्र शूर और वणिक -पुत्र वीर दोनों ही झटपट एक गांवमें चले गये और वहाँसे कुछ खाने-पीने की चीजें ले आये। इतने में मंत्रीपुत्र कलासार और वैद्य-पुत्र जयने कुमार विश्वसेनकी देवपूजाका सारा सामान ठीक कर दिया। पूजा समाप्त होनेके अनन्तर जब राजकुमार भोजन करनेके लिये तैयार हुए, तब किसी अतिथिके आनेकी राह देखने लगे। इसी समय एक महीने भरके उपवासी मुनि दिखाई पड़े। सच है, 'धन्यानां फलन्त्याशु P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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