Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 47
________________ - रतिसार कुमार उन्होंने देखा, कि राजगृहके आँगनमें प्रजाका समूह इकट्ठा हो रहा है। कुमारने पूछा,-'यह क्या मामला है ?' यह सुन, भक्तिकलामें परम प्रवीण कोतवालने हाथ जोड़े उत्तर दिया,"राजकुमार ? यह ताम्रलिप्ति-नगरका राजा विक्रमसेन है। इस कपटी राजाने अपनी सेनाके द्वारा हमारे देशका ठीक उसी तरह सत्यानाश करवाया है, जैसे बाज़ पक्षियोंका नाश करता है। इसने इस नगरमें अपने गुप्तचर भेज कर जयलक्ष्मीके लीला-पर्वतके समान हमारे हाथियोंको जहर देकर मरवा डाला है। राजकुमार ! हमारा इसकासा भयङ्कर शत्रु इस दुनियामें दूसरा नहीं है। वीरसेन नामक हमारे सेनापतिने इसे छलसे पकड़ कर यहाँ ला पहुँचाया है। अब हमारे राजा साहबने हमें आज्ञा दी है, कि इस अपराधोंके समुद्रको मारकर ढेर कर दिया जाये। यह सुनते ही कुमारका चेहरा क्रोधसे तमतमा उठा और उनके हाथकी चमकती हुई तलवार कालके कटाक्षकी भाँति नाच उठी। देखनेवालोंने सोचा, कि कुमार स्वयं इस अपराधीको मारेंगे। ताम्रलिप्ति नगरके राजाने भी कुमारको इस प्रकार वीर-वेशमें अपनी ओर आते देख सोचा, कि बस अब मेरी मृत्यु.मा पहुँची। भयके मारे उसकी आँखें पथरा गयीं; परन्तु कुमारने उसके पास पहुँच, कृपा. से आँखोंमें आँसू भर, प्रेमसे रोमाञ्चित हो, निःस्वार्थ बन्धु समान उस राजाके बन्धन अपनी तलवारसे काट डाले। इसक बाद मनकी तरह तीव्र गति वाला और मनको आनन्द देने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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