Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ रतिसार कुमार भने पृथ्वा लोग क र श देशना समाप्त होने पर राजकुमारने मुनीश्वरको प्रणाम कर, सुबन्धुके और अपने कर्मकी विचित्रताका कारण रूप पूर्वभव-सम्बन्धी वृत्तान्त सुननेकी इच्छा प्रगट की। यह सुन, मुनीश्वरने किरणोंके समान चमकते हुए दाँतों के बीच सरस्वती के हिंडोलेके समान जिह्वाको लाकर यों कहना आरम्भ किया। ___"पूर्व समयमें पृथ्वीके सब नगरोंमें श्रेष्ट हस्तिपुर नामका एक नगर था। उस नगरके लोग कीर्ति रूपी जलमें स्नान कर लक्ष्मीका सेवन कर रहे थे। उल नगरमें शत्रुओंको त्रास देनेवाले सुमित्र नामके एक राजा रहते थे। राजाकी प्रताप वल्लीके सामने सूर्य भी फूल सा दीखता था। उनकी कलाओं और गुणोंका सङ्कत करने वाला तथा विश्वका आभूषणस्वरूप विश्वसेन नामका एक पुत्र भी उनके था। कुमारके चित्तमें इतनी दया थी, कि वे गर्वसे फुफकार छोड़ते हुए सर्प को भी दुष्ट दष्टिसे नहीं देखते थे। दया-रूपिणी हस्तिनाके लिये विन्ध्याचलके समान वे कुमार अन्यान्य-वल्लीके अङ्कर-रूपी चोर-डाकुओं पर भी कभी वधकी आज्ञा नहीं जारी करते थे चाहे अपराधी हो या क्रोधित शत्रु ; पर राजकुमार इतने विश्ववत्सल थे, कि किसी पर द्वेष नहीं रखते थे। कलासार, शूर, वीर और जय नामके चार मित्र कुमारके बड़े ही प्रिय थे। इनमें पहला मन्त्रोका लड़का, दूसरा एक क्षत्रीका पुत्र, तीसरा वेश्यका पुत्र और चौथा वैद्यका पुत्र था। जैसे बुद्धिमान् पुरु P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91