________________ तीसरा परिच्छेद मेरे अंगोंका आलिङ्गन करो, जिससे ये अङ्ग तुम्हारे स्पर्श-रूपी अमृतका पान कर रसनेन्द्रियको लजित कर दें।" यह कह राजा नीचे उतर आये और कुमारको गलेसे लगाकर अपने साथ सिंहासन तक ले आये तथा उन्हें गोदमें बैठाकर कहने लगे,-'हे वीर श्रेष्ठ ! अपने स्फटिकके समान उज्वल गुणोंसे तुमने किस कुलको सब कुलोंका आभूषण बना रखा है ? अभिधान-रूपी अमृतके कलशले किन अक्षरोंको लेकर तुम संसारके दुःखोंसे जलते हुए सजनोंके मनको सींच रहे हो? हमारे राज्यके अपूर्व-भाग्यसे आकर्षित होकर तुमने अपने वियोगले किस देशको दुःखित किया है ? तुम्हारी वेश-भूषा देखकर मालूम पड़ता है, कि तुमने हालमें ही विवाह किया है। पर यह तो कहो, तुमने किस कन्या के जीवन, जन्म और शरीरको सफल किया है ? तुम्हारा रूप ऐसा मन-लुभावना होने पर भी मेरे सिपाही क्यों दुम्हें देख कर वैसे ही अन्धे हो गये; जैसे सूर्यको देख कर उल्लू अन्धे हो जाते हैं।" राजा की यह बात सुन, कुमारने उनसे अपना हाल ज्योंका त्यों कह सुनाया और अन्तमें कहा,-"आपके सिपाही क्यों अन्धे हो गये, यह मुझे नहीं मालूम। ___ इसके बाद राजा, मन्त्री और सेठने अपनी-अपनी कन्यामोंके विवाह बड़ी धूम-धामके साथ किये। उसी समय श्लोक अर्पण करने के कारण बन्धुके समान, प्रीतिमान् बने हुए सुबन्धुने सुना, कि कुमार उसके नगरमें आये हैं। यह सुन, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust