Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 36
________________ 28 ___ रतिसार कुमार हई शोभाको पुनः लौटते देख, लक्ष्मीको चञ्चल समझकर, हृदय में सन्तोष धारण किये हुए विद्वान् पुरुष दान करने लगे ; जिसका संयोग होता है, उसका वियोग भी अवश्यम्भावी है इस बातको बतलानेवाले चक्रवाक-पक्षीको देखकर जब साधु पुरुष धर्मदेशना सुनाने लगे; जब कमलोंपर मँडराते हुए भौरे मानों यही कहने लगे, कि समय आनेपर सोये हुए मनुष्यको भी मेरी ही तरह लक्ष्मी प्राप्त होती है, इसलिये उसके लिये कष्ट उठानेकीकोई आवश्यकता नहीं ; जब सूर्यने उसी तरह संसारके अन्धकारका नाश कर दिया, जिस तरह तीर्थङ्कर अपने चरणों द्वारा पृथ्वीको पवित्र कर सारे संसारके पाप-तापका नाश कर देते हैं। जब ज्ञानी मनुष्य यही जानकर ज्ञानका अभ्यास करने में लीन हो गये, कि ज्ञानही सारी सिद्धियोंका मूल है : तब उसी प्रभातकालमें डरती-डरती महलकी पहरेदारिनोंने राजासे आकर कहा,"महाराज! राजकुमारी सौभाग्यमञ्जरी आज अभीतक सोकर नहीं उठी हैं। साथ ही यह बात भी बड़े अचम्भेकी है, कि उनके शरीर पर विवाहके चिह्न दिखलाई दे रहे हैं।" - इसी समय मन्त्री और सेठने भी राजासे आकर कहा, कि आज रातको न जाने किसने छिपे-छिपे मेरी कन्याके साथ विवाह कर लिया। यह समाचार सुनकर राजा बड़ी चिन्तामें पड़ गये। उन्हें यह सोचकर बड़ा भारी क्रोध हुआ, कि उनके राज्यमें आकर न जाने कौन ऐसी अनहोनी बात कर गया! जिस समय राजा इस विचारमें पड़े हुए चिन्तामें चर हो रहे थे, उसी समय एक P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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