Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 35
________________ तीसरा परिच्छेद 27 कामदेवके मन्दिरकी ओर चलीं। उस समय उनके हृदय में भी कुमारकी ही तरह यह सन्देह हो रहा था, कि कहीं वह पुरुष अन्यत्र तो नहीं चला गया ? इधर कुमार भी यही सोच रहे थे, कि कहीं वे नहीं आयीं, तो फिर मेरी यह तपस्या किस काम आयेगी ? पर उस समय दोनों ओरके आनन्दकी सीमा न रही, जब एक दूसरेने अपने प्रेमपात्रको आँखों देख लिया। सखियाँ कुमारको देख, जितनी आनन्दित हुई, कुमार भी उन्हें देखकर उतनेही आनन्दित हुए। ...तदनन्तर बड़े प्रेमसे आग सुलगायी गयी-उस समय उस अग्निकी ज्वाला ऐसी मालूम पड़ो, मानों उन तीनोंने अपने हृक्ष्य. . की विरहाग्नि बाहर निकालकर रख दी हो। तदनन्तर विवाहके समय किये जानेवाले कितने ही कृत्य करके उन तीनों कन्याओंने राजकुमारके साथ अपना विवाह कर लिया। विवाहके बाद परस्पर प्रेमालाप होने लगा। रातभर उनमेंसे कोई सोयाही नहीं-सारी रात रंग-रस और प्रेमकी बातें होती रहीं। अन्तमें जब रात बीत गयी ओर प्रभात हो चला, तब वे नवविवाहिता स्त्रियाँ अपने खामीले आज्ञा ले, अपने-अपने घर चली गयीं और चन्द्र-विरहिणी कुमुदिनीकी भाँति सो रहीं। पुनः सूर्योदय होनेके भयसे भगी हुई निद्राने कमलोंको छोड़कर कुमारके नेत्र-कमलोकी शरण ली। 17 तदनन्तर जब रात्रिकी तरह अपनी देहको भीनाशवान् समझ कर बुद्धिमान् पुरुषगण धर्मध्यान करने लगे; जब कमलोंकी गयी * P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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