Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 25
________________ do दूसरा परिच्छेद / No-... LATO 10.00000 0%AOSC गृह-त्याग -:*:-- OHEROERS न्ध्याके समय, प्रतिदिनके नियमानुसार राजकुमार 0 रतिसार, राजदरबारमें अपने पिताके पास आये। ousao इसी समय राजाके खजांचीने कुमारकी फ़िजलखर्चीकी ओर राजाका ध्यान आकर्षित किया। इतना बेहिसाब धन देकर एक श्लोक खरीदने पर उसे बड़ा अचम्भा हो रहा था। इसीलिये उसने इस ओर राजाकी दृष्टि आकृष्ट की। __' उसके मुंहसे इस अपव्ययकी बात सुनतेही राजाको बड़ा क्रोध हुआ। उन्होंने क्रोधसे लाल-लाल नेत्र किये, राजकुमारकी ओर देखते हुए कहा, “कुमार ! यह तुम्हारी कितनी बड़ी मूर्खता है, जो तुमने लाख मुहरें देकर एक श्लोक खरीदा है ! तुम्हें क्या लक्ष्मीसे इतनी चिढ़ हो गयी है, जो तुम उसे इस तरह गलीके ठीकरेकी तरह फेंक रहे हो? बड़े-बड़े दिग्गज कवि, जो पोथेका / पोथा लिखकर रख देते हैं, तुम्हारे यहाँ केवल भोजन और वस्त्र .. लेकर ही टिके हुए हैं, फिर तुम्हें इस तुच्छ श्लोकके लिये लाल . मुहरें खर्च करनेकी क्या आवश्यकता थी ? जो द्रव्य, इस लोक P.P.AC.Sunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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