Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 30
________________ 22 रतिसार कुमार सेठकी है। ये दोनों भी ऐसी सुन्दर हैं, कि मालूम पड़ता है, मानों राजकुमारीकी रूप-रचना करने में कहीं कुछ कसर रह गयी है या नहीं, इसी बातकी परीक्षा करनेके लिये विधिने इन दोनोंके सौन्यकी सृष्टिकी है। प्रियंवदा और सुतारा नामकी ये सहेलियाँ सदा-सब कामोंमें राजकुमारीके साथ रहा करती हैं। जैसे रति और कान्ति लक्ष्मीको कभी नहीं त्याग देतीं, वैसे ही ये दोनों भी राजकुमारीको कभी नहीं छोड़तीं। ये तीनों लड़कियाँ मानों तीनों लोकोंका सौन्दर्य लूट लायी हैं और सब कलाओंमें कुशल हैं। वे सदा यहाँ पर कामदेवकी पूजा करनेके लिये आया करती हैं। यह आवाज़ तो कुछ उन्हीं सबकी सी मालूम पड़ती है।" ___ वह मन्दिरकी पुजारिन ऐसा कही रही थी, कि इसी समय कुमारने कामदेवकी पूजा करनेके लिये आती हुई उन चञ्चल नेत्रोंवाली सुन्दरियोंको देखा। उस समूहमें तीन सुन्दरियाँ जो पालकियों पर सवार थीं, अनङ्ग-महाराजकी तीनों *शक्तियोंके समान जान पड़ती थीं। वे कनक-कान्तिमयी कामिनियाँ युवा पुरुषोंके नर रूपी वनको दहन करनेवाली दावाग्निकी तरह लपकी हुई चली आ रही थीं। पुरुषोंके हृदयमें छाये हुए मोहमय अन्धकारमें प्रकाश उत्पन्न करनेवाले चन्द्रमाके समान सुन्दर मुख-मण्डलसे शोभाका विस्तार करती, विवेक-रूपी पुष्पमें लीन सत्पुरुषोंके मन-रूपी भौंरेको - प्रभुशक्ति, मन्त्रशक्ति और उत्साह-शक्ति। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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