Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 28
________________ रतिसार कुमार चलते वे बड़ी दूर निकल गये। रातको घने जङ्गलोंकी राह जाते समय हिंसक जन्तु भी उनके शरीरसे निकलते हुए तेजको आग समझ कर उनके पास नहीं आते थे। “यह पुरुष कोई मनुष्य नहीं, बल्कि देवता है , तभी तो इतनी रातको ऐसी हिम्मत और निडरपनेके साथ जंगलकी सैर कर रहा है। यही लोच कर चोर भी उनके पास नहीं आते थे। सच है, पुण्यात्मा पुरुषोंके लिये कोई स्थान अगम्य नहीं है। उनके लिये सहस्त्रों मनुष्योंसे भरी हुई वस्ती और हिंसक जन्तुओंसे भरा हुआ वन-दोनों ही बराबर हैं। - इस प्रकार :रातों-रात सफ़र करते हुए कुमार रतिसार तीन दिनों तक बिना खाये-पीये सफ़र करते हुए चले गये। पूर्व पुण्योंके प्रतापसे उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। चौथे दिन वे श्रावस्ती-नगरीके पास आ पहुंचे। उस समय ठीक दोपहरका समय था, इसलिये सिर पर आये सूर्य की तीखी किरणोंसे पीड़ित और कई दिनोंके सफ़रसे अकुलाये हुए कुमार रतिसारने पास ही कामदेवका एक मन्दिर देख, उसीमें विश्राम करना आरम्भ किया। उस मन्दिर में एक स्त्री पुजारिन थी। उसने कुमार रतिसारका वह सुन्दर-सलोना रूप देख कर अपने मनमें सोचा,-"यह तो कोई ऐसा वैसा आदमी नहीं, बल्कि बड़ा ही तेजस्वी पुरुष मालूम पड़ता है। ऐसा विचार कर, वह झटपट बाहर आयी और शुद्ध पात्रमें जल भर लायी। इसके बाद उसने कुमारसे कहा, "हे वीर पुरुष! कृपा कर इस जलको .P.AC. GunratnasurM.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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