Book Title: Ratisarakumar Charitra
Author(s): Kashinath Jain
Publisher: Kashinath Jain

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Page 22
________________ 14 रतिसार कुमार - यह श्लोक सुनाकर उसने कहा,-"राजकुमार ! सचमुच इस श्लोकमें बड़ा ही अमूल्य उपदेश भरा है। दुनियामें ऐसे बहुतसे लोग हैं, जो सम्पत्ति पाकर आनन्दसे बावले हो जाते हैं, पर यह कभी नहीं सोचते, कि यह उनके पूर्व जन्मके पुण्योंका परिणाम है। जिस धर्मके प्रभावसे उन्हें सम्पत्ति मिलती है, उसे वे भूलही जाते हैं। रात दिन धनके लिये हाय-हाय करने में ही उनका सारा जीवन व्यतीत हो जाता है। द्रव्योपार्जनको ही वे अपने मनुष्य-जन्मकी सार्थकता समझते हैं। उनको धनका इतना बड़ा नशा चढ़ जाता है, कि उनमें तरह-तरहके मिथ्या अभिमान भर जाते हैं। वे रात-दिन आँखों देखते और कानों सुना करते हैं, कि किसीकी सम्पत्ति अचल होकर नहीं रही-जहाँ अस्त है, वहीं उदय है, जहाँ सम्पत्ति है, वहीं विपत्ति है, तो भी वे इस यातको कभी अपने मनमें नहीं आने देते। पूर्व में पुण्य करनेसे ही यह सम्पत्ति मिली है और इस जन्ममें भी दान-पुण्य करनेसे ही अगले जन्ममें भी सुख होगा, इस शास्त्र-रहस्यको वे जानकर भी नहीं जानते ।ज्ञानी गुरुओंके निर्मल, परित्राणकर और शान्तिदायक उपदेशोंकी ओरसे वे कान वहरे किये रहते हैं। मोह, मद, अविनय, लोभ और विषय-वासना आदि दोष ही उन्हें अच्छे लगते हैं। इसी प्रकार विपत्ति पड़नेपर वे अज्ञानके मारे तरह-तरह के बुरे ध्यानमें पड़ कर, अशुभ कर्मों का उपार्जन किया करते हैं। ऐसे बहुतसे कायर मनुष्य हमें दिखाई देते हैं, जो विद्वान्, गुणी और बड़ी उमरवाले कहलाते हुए भी विपत्तिके समय विह्वल हो PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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