________________ रतिसार कुमार अच्छी है, क्योंकि मानवाले प्राण दे देते हैं ; पर मान नहीं जाने देते। 2. “विपत्तिकालमें ही स्त्रियोंकी परीक्षा होती है। अज्ञानी और मूर्ख स्त्रियाँ ऐसे दु:खके दिनोंमें भी गहने-कपड़ोंके लिये पतिको तकिया करती हैं। नीतिका यह वचन है, कि आपत्ति-कालमें मित्रों और बान्धवोंकी परीक्षा होती है और वैभवका नाश होने पर स्त्री और सच्चे नौकरोंकी पहचान होती है। यह बात बिल. कुल ही ठीक है। सम्पत्तिका नाश हो जानेपर भी अपने मनमें सन्तोष माननेवाली कोई विरली ही स्त्री होती है। ऐसे समयमें बड़े-बड़े शानियोंके छक्के छूट जाते हैं, फिर स्त्रियोंकी तो बात ही क्या हैं ? अपनी स्त्रीके इस प्रकार बार-बार आग्रह करने पर मैं यही सब बातें सोच रहा था और मन-ही-मन कह रहा था, कि जब यह स्वयं अपनी आँखों मेरी अवस्था देखकर भी ऐसा कह रही है, तब मैं इसे और क्या समझाऊँ-बुझाऊँ ? ऐसी अवस्थामें मुझे क्या करना चाहिये, यह मेरी समझ में नहीं आया। चेहरेका रङ्ग उड़ गया। जी बैठ गया। बैठा-बैठा घरकी चारों ओर नज़र दौड़ा कर मैं देखने लगा, कि कौनसी ऐसी चीज़ बेच दूं, जिससे मेरो स्त्रीके गहने-कपड़ोंका प्रबन्ध हो जाये; परन्तु अपनी देहके सिवा मुझे और कोई चीज़ नहीं दिखाई दी। यह देख, मैं फिर इसी सोचमें पड़ गया, कि अब कहाँ जाऊँ ? क्या कऊँ ? इसी सोचमें पड़े-पड़े मेरा हृदय दुखी हो गया। अन्तमें 'विपत्तिके समय स्मरण करने योग्य उसी श्लोक-रत्नको स्मरण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust