________________ पहला यरिच्छेद __ उस आदमीके मुंहसे यह विचित्र बात सुन, मन-ही-मन बड़ा आश्चर्य अनुभव कर, राजकुमारने अपने मित्रोंकी ओर फिर कर कहा, "भाई ! मेरी तो बड़ी इच्छा हो रही है, कि उस श्लोक-रत्नको ख़रीद लूं। यह आदमी कोई ऐसा-वैसा नहीं मालूम पड़ता। इसमें बडे-बड़े गुण छिपे मालूम होते हैं। जब इसको साधारण बातचीतमें इतना आनन्द है, कि सुन कर चित्त प्रसन्न हो जाता है, तब उस श्लोकमें न जाने कितने भाव भरे होंगे! इसलिये उस श्लोकको ख़रीद लेना ही ठीक है। ___ यह कह, नप-नन्दनने उस श्लोक बेचनेवालेके पास जाकर कहा,-"हे नर-श्रेष्ठ ! तुम अपनी इच्छाके अनुसार लाख मुहरें ले लो और मुझे वह सूक्ति-रत्न दे दो। साथ ही उस श्लोकके विषयमें जितनी जानने योग्य बातें हों, वह सब मुझे बतला दो।" __ यह सुन, प्रीति-रूपी समुद्रकी तरङ्गक समान चञ्चल मुसः कानवाला वह श्लोक-विक्रेता, कुमारके मुख-मार्तण्डको देख, कमलकी तरह विकसित-वदन हो, बोला,---“हे राजकुमार! पहले इस श्लोक-रत्नकी उत्पत्तिका ही हाल सुन लीजिये / इन्द्रकी अमरावती-पुरीको भी लज्जित करनेवाली, लक्ष्मीके क्रीड़ा-काननके समान धन-धान्यसे भरी-पूरी श्रावस्ती नामकी एक नगरी है। जैसे हाथीको अपने बलकी आप ही थाह नहीं लगती, वेसे ही अपनी धन सम्पत्तिकी थाह नहीं जाननेवाला मैं उसी नगरी का एक नामी-गरामी धनवान् मनुष्य था। मेरा नाम सुबन्धु है। मेरे घर लक्ष्मी क्रीड़ा करती रहती थी। घोड़े P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust