Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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गुरुदेव के बढ़ते चरण
चम्पालाल पुखराज गाँधी
राजस्थान का पश्चिमांचल आहोर नगर में जालोर आने वाली सड़क पर सैकड़ों का एक जन समूह जालोर नगर की ओर अग्रसर है। इस जन समूह में अनेक लोग छोटे-छोटे समूह बनाकर अपना हर्षोल्लास प्रकट कर रहे हैं। एक श्रद्धालु अपनी बुलन्द आवाज में जय घोष करता है : त्रिशला नन्दन वीर की। समूह अनुसरण करता हुआ : जय बोलो महावीर की व्यक्ति ? वंदे । समूह : जिनवर आदि जय जयकार शब्द वायु की तरल चादर को भेदते आकाश को छू रहे हैं । वायु मण्डल आपूरित हो रहा है और मंद गति से जन समूह जालोर नगर की ओर बढ़ रहा है कि लो नगर द्वार निकट आ गया।
यहां दृश्य भी दर्शनीय है सब उस आने वाली भीड़ को देखकर कुछ तैयारी में लग गये । वाद्य वाजंतरी, ढोल थालियां बजने लगीं । स्त्रियां जो रंग-बिरंगे वस्त्र पहिने खूब सज-धज के साथ आई थीं कलश लिये समूहबद्ध खड़ी हो गईं। पुरुष वर्ग आहोर की ओर से आने वाले समूह की ओर स्वागतार्थ बढ़ा। नदियों का नदियों से संगम हुआ । लहरें थपेड़े खाने लगीं जैसे समुद्र में तूफान आ गया है। सैकड़ों का समूह समूह में विलीन हो सहस्रों का रूप धारण कर गया। अब महिलाएं भी भक्ति विभोर हो भक्ति गीतों की स्वर लहरी वायुमण्डल में कर्णप्रिय मधुरता भरने लगीं।
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महिलाएं आगे बढ़ीं। प्रवेश द्वार के मध्य पाट बिछाकर स्वस्तियां बनाई जाने लगीं, कलमों से सुशोभित महिलाएं एक-एक आकर नये स्वस्तिक बनाकर कलश झुकाकर स्वागत करतीं। फिर भक्ति विभार हो अक्षत उछाल मस्तक झुका श्रद्धावश हाथ जोड़ एक ओर हो जातीं, पुरुषवर्ग पूर्व नियोजित कुछ रुपयों का विसर्जन कलशों में करते जा रहे थे। ढोल व थाली बजाने वालों का भी उत्साह बढ़ता जा रहा था। संध्या बढ़ने व जय जयकारों की बुलंदियों से ढोल थालियों के नांदों में भी तेजी आ रही थी । वाद्य यंत्र और तेजी से
वी. नि. सं. २५०३
मय मधुरता से बज रहे थे। कुल मिलाकर ऐसा अनुभव हो रहा था कि मानो पूर्व नियोजित देवोत्सव सम्पन्न हो रहा है।
द्वार से ही नगर को अलंकरित किया गया है, जगह जगह पर इन्द्रधनुषी रंग की फरियां फहरा रही हैं और आम्र पत्र के तोरण किसी महापुरुष के स्वागत में प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अब काफिला और आगे बढ़ा। यह सब विचित्र दृश्य देखने के लिए आए नर-नारियों का जमघट भी कम नहीं, सहस्रों की संख्या में लोग सड़कों के किनारे कतार बद्ध विचित्र मुद्रा व पिस्फारित नेत्रों से
समूह के मध्य मंथर गतियों से बढ़ने, दायें हाथ में धर्म दण्ड बायें हाथ में श्वेत वस्त्रावरण काष्ठ पात्र लिए अग्रसर एक श्वेत वस्त्रधारी महाओजस्वी धीर गंभीर निश्चलदृष्टियुक्त चरित्रात्मा को देख रहे हैं जो सबके लिए प्रभावशाली आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है ।
लीजिए, अब तो दो-दो कदम पर श्रद्धालु गण पाट पर अक्षत द्वारा, स्वस्तिक के कलश द्वारा अभिवादन करने लगे उस महापुरुष के चरण स्पर्श पाने के लिए लालायित श्रद्धालु नागरिकों में धक्कम - धक्का भी होने लगी। बड़ी कठिनाई से एक घण्टे से अधिक समय में एक फर्लांग मार्ग तय हुआ ।
कौन है वह महापुरुष जिसके सम्मुख इतना बड़ा जन समुदाय श्रद्धावनत हो मस्तक झुका कर अभिवादन की होड़ लगा रहा है ? कौन है यह पुण्यवान प्राण ? कौन है यह त्याग वीर योगीराज ? जिसके दर्शन मात्र से संघ समुदाय हर्षोन्मुख हो जय घोषणा कर रहा है ।
पहिचाना आपने कौन हैं ये महापुरुष ? जिनके आहोर से प्रस्थान कर जालोर नगर में पधारने की गुप्त सूचना मात्र से ही आदर व श्रद्धावन्त हो सैकड़ों की संख्या में जन समुदाय स्वागतार्थ चार मील आगे बढ़ गया था ।
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