Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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जैन गणित की अप्रतिम धाराएं
प्रो. लक्ष्मीचन्द्र जैन
जन साहित्य में दो प्रकार की धाराओं में गणित का विकास देखने में आया है। एक तो शुद्ध गणित धारा जिसे राशि सिद्धान्त कहा जा सकता है और दूसरी प्रयुक्त गणित धारा जिसे सिस्टम (System) सिद्धान्त कहा जा सकता है । आधुनिक राशि सिद्धान्त के जन्मदाता जॉर्ज केण्टर (१८४५-१९१८) थे जिन्हें अनन्तों को बांधने वाले राशि-सिद्धान्त को प्रतिष्टित करने में संपूर्ण जीवन भर मेधावी गणितज्ञों से संघर्ष में झुलसते रहना पड़ा । किन्तु आज का विकसित राशि-सिद्धान्त प्रत्येक विज्ञान और कला एवं वाणिज्य में मूलभूत आधार बन गया है। जैन दर्शन में भी अनन्तों को बांधा गया राशि-सिद्धान्त के द्वारा-उपमा और संख्या प्रमाणों द्वारा । त्रिलोक प्रज्ञप्ति और त्रिलोक सार जैसे ग्रंथों में यह प्रयास उपलब्ध है। यह राशि-सिद्धान्त आधार बन गया कर्म सिद्धान्त का-जिसे आशीर्ष समझने के लिए अर्थ संदृष्टि ग्रंथों का सहारा अनिवार्य है। कर्म सिद्धान्त का गणित, प्रयुक्त गणित है जो आधुनिक सिस्टम सिद्धान्त का प्रारूप है और जिसे विगत ३० वर्षों में विकसित किया गया है। वह है मुख्यतः नियन्त्रण, लब्धि और स्वचालित यंत्रों का गणित, जिसका आधार है राशि-सिद्धान्त का प्रयुक्त विकसित रूप ।
इस प्रकार, जैन दर्शन की मूलभूत और रहस्यमय गहनता को समझने के लिए करणानुयोग में दो प्रयास प्रतिलक्षित होते हैं । एक तो उपमा और संख्या प्रमाणों की उत्पत्ति और उनका प्रयोग । दूसरा कर्म के दृष्ट और अदृष्ट रूपों के माप और उनका विविध ढंग से प्रयोग । द्रव्य के प्रमाणों को द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के मापों द्वारा बांधा गया और चित्रित किया गया त्रिलोक के नक्शे में । यहाँ बीजगणित और रेखागणित, अनन्तों के रूपों और सान्तों के रूपों द्वारा अदृष्ट और दृष्ट के गणितीय प्रकार को उभार लाये । यहां तक कार्य इतना कठिन नहीं था किन्तु आगे चलकर इन्हें डायनेमिक्स (Dynamics) अर्थात्, कर्म (Action) के चल रूप को भी राशि-सिद्धान्त में बांधना पड़ा।
किसी भी सिस्टम का डायनेमिक्स-सिद्धान्त निर्धारित करना गणित से संभव है। वह भी राशि-सिद्धान्त के प्रयोग से अभूतपूर्व निर्धारण लाता है । जैन कर्म-सिस्टम को राशि-सिद्धान्त से बांधा गया और यह ही विश्व की आधुनिकतम अभी भी अविकसित अभतपूर्व कला और अप्रतिम विज्ञान माना जा रहा है। राशिसिद्धान्त द्वारा ही गणितीय सिस्टम सिद्धान्त को आज बांधा गया है । इसे एब्सट्रेक्ट एप्रोच (Abstract Approach) कहा जाता है । इस प्रयास में विश्व के आधुनिकतम गणितों का प्रयोग होता है।
इसकी एक दो रहस्यमय बातें बतलाकर ही इस निबंध को समाप्त करना पड़ेगा, क्योंकि गणितगम्य को भाषा गम्य बनाना संभव प्राय नहीं है । वे रहस्य क्या हैं ? योग और मोह के गणित । योग और मोह सम्बन्धी नियन्त्रण, स्वचालन के गणित ।
कर्म के आने, बंधने, उदय होने, निर्जरित होने के गति विज्ञान को बांधा गया आठ मूल प्रकृतियों के आधार पर, उनकी स्थिति, उनके संबंधित प्रदेशों, उनके अनुभाग के गणितीय पहलुओं पर, जैन दर्शन ने कठिनतम् प्रश्नों के उत्तर दिये गणितीय आधार पर, अमर्त पहुंच के आधार पर और चलायमान प्रकृतियों में बंधे परमाणु और आत्मा के आधारभूत विभावों पर।
इन अध्रुव दृष्टों, दृश्यमानों में उलझने का लक्ष्य सुलझना था। ध्रुव, सत्य का प्रकाशन था । उत्पाद और व्यय के लेखे में सभी विज्ञान अनादि से उलझे रहे किन्तु ध्रौव्य का लेखा न कर सके। जैन दर्शन के गणित विज्ञान को यह एक थेय मिला, और वह भी अप्रतिम श्रेय (कि ध्रौव्य का लेखा-गणितीय प्रारूप क्या है ?) ।
ध्रौव्य को पकड़ प्रज्ञा द्वारा सहज है । गणितीय प्रज्ञा द्वारा और भी सहज है। नितान्त सहज है। किन्तु ..........।
वी.नि.सं. २५०३
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