Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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रामायण की विशेषता-इतनी लोकप्रिय होने से इसमें कुछ विशेषता होनी चाहिये । रामायण के प्रमुख पात्र राम, लक्षमण, सीता व रावण हैं । इनकी महानता का दिग्दर्शन कराने के लिये, रामायण के कुछ प्रसंगों का यहां उल्लेख करेंगे।
१. रावण शान्तिनाथ चैत्यालय में बहुरूपिणी विद्या को सिद्ध कर रहा था हनुमान, सुग्रीव आदि ने रामचन्द्रजी से कहा कि रावण बहुरूपिणी विद्या सिद्ध कर रहा है और अगर वह उसने सिद्ध करली तो रणभूमि में वह अनेक रूप धारण करके आवेगा जिससे असली रावण को पहचानना मुश्किल हो जावेगा और हम युद्ध में हार भी सकते हैं । अतएव हमें आज्ञा देवें कि हम विघ्न डालें जिससे वह विद्या सिद्ध नहीं कर सके। रघुवीर ने बड़े शान्त स्वर में कहा कि रावण धर्मस्थान में आराधना कर रहा है, उसमें विघ्न डालने की मैं स्वीकृति नहीं दे सकता। भले ही इसके फलस्वरूप मैं युद्ध हार जाऊं और सीता को पाने से वंचित रह जाऊं। ऐसे थे रघुवीर । उनकी सात्विक वृत्ति के आगे किसी की भी नहीं चली।
२. समुद्र के किनारे राम आराधना कर रहे थे कि अचानक विभीषण वहां आ गया और अपनी आप बीती सुनाने लगा। रामचन्द्र ने पूरी बात सुन कर लक्ष्मण से कहा कि समुद्र से जल लाकर इनका लंका का राज्याभिषेक कर दो। सभी स्तब्ध रह गये। लक्ष्मण भी कुछ हिचके, पर राम के पुनः कहने पर उन्होंने अभिषेक कर दिया । तब हनुमान ने कहा कि आपने विभीषण की परीक्षा लिये बिना ही उसका राज्याभिषेक कर दिया। रामचन्द्र ने उत्तर दिया कि कोई अकस्मात् आता है और मेरी शरण स्वीकार करता है तो उसको अभयदान देना मेरा कर्तव्य है । हनुमान के पुनः पूछने पर कि अगर कभी रावण भी आपकी शरण में आ जाय तो? राम ने मुस्कराते हुवे कहा कि लंका का राज्य तो विभीषण को दे चुका अब अगर रावण आता है तो अयोध्या का राज्य तैयार है। इतने उदात्त थे, वे महापुरुष, दूरदर्शी भी थे। उन्होंने भविष्य को ताड़ लिया था।
३. सीता के अपहरण से राम बहुत दुखी हो गये थे । सीता को ढूंढते, वह बन-बन फिर रहे थे। रास्ते में उन्हें कुछ आभूषण मिले, राम ने लक्ष्मण को कुंडल दे कर पूछा कि लक्ष्मण क्या ये कुंडल सीता के हैं ? लक्ष्मण ने इनकार किया कि मैं नहीं जानता तो राम ने कंकण का टुकड़ा देकर उमे पहचानने को कहा, तब भी लक्ष्मण ने वही उत्तर दिया। राम को शंका हो गई क्योंकि राम ने उन आभूषणों को पहचान लिये थे। इन्हें सीता ने इस कारण गिरा दिये थे कि कभी राम को मिल गये तो वे जान जावेंगे कि सीता किधर गई है। भाई की शंकाशील मुद्रा देख कर लक्ष्मण ने कहा कि भाई मैं तो प्रतिदिन सीतामाता के चरण छूता था, आपके पास उनके पांव की कोई वस्तु हो तो बतलावें । मैं पहचान लूंगा। क्या ऐसा शील-संवर्धन आज के नवयुवकों में पाया जाता है ?
४. शंभुकुमार की माता रामचन्द्र और लक्ष्मण के रूप को देख कर उनकी ओर आष्ट हो गई । परन्तु राम और लक्ष्मण उसके
हाव-भाव व उन्हें मोहित करने के प्रयासों से रंचमात्र भी विचलित नहीं हुवे । आखिर अपूर्व सुन्दरी उस रावण-भगिनी को निराशा ही हाथ लगी।
५. शभुकुमार सूर्यहास खड्ग को सिद्ध करने के लिये १२ वर्षों से तपस्या कर रहा था । आखिर उसकी तपस्या सफल हुई और खडग आकाश से नीचे उतरने लगा । शंभुकुमार उसे ले इसके पहले लक्ष्मण ने उसे अपने अधिकार में कर लिया और उसकी तेज धार की परीक्षा करने लिये बांस के झंड पर उसे चला दिया । न केवल वह बांस का झुंड ही कट कर गिरा बल्कि पास खडा हुवा शंभुकुमार भी उसकी चपेट में आ गया और उसके दो टुकड़े हो गये। फलितार्थ यह हुवा कि १२ वर्ष को तपस्या के बाद प्राप्त खड्ग को वह अपने कब्जे में नहीं रख सका और वह अनायास ही लक्ष्मण को प्राप्त हो गया । यह कर्म को विचित्रता ही है । किस समय कौनसा कर्म उदयमान हो जाय यह कहा नहीं जा सकता।
६. नवमास की गर्भिणी सीता को किसी लोकोपवाद के भय से रामचन्द्र ने छोड़ने का तय कर लिया। उनका दोहला था कि वे तीर्थयात्रा करेंगी। सो तीर्थयात्रा कराने के बहाने सीता को ले जा कर वन में छोड़ आने के लिये राम ने लक्ष्मण को कहा । पर लक्ष्मण निरपराधिनी सीतामाता को दंड देने को राजी नहीं हवा । तब राम अपने सेनापति को आदेश देते हैं कि सीता को तीर्थयात्रा के बहाने ले जा कर दंडकारण्य में छोड़ आओ । सेनापति सीता को लेकर दंडकारण्य जाता है और वहां सीता को उतार देता है। जब सीता यह कहती हैं कि यह तो तीर्थस्थान नहीं है तो रोता हुवा सेनापति कहता है कि अब यह जंगल ही आपके लिये तीर्थस्थान है क्योंकि लोकोपवाद के भय से स्वामी ने आपको त्याग दिया है। सीतादेवी सोचती है कि मेरे अशुभ कर्मों का उदय हुआ है, उसका फल तो मुझे भुगतना ही पड़ेगा। वापस लौटते हवे सेनापति को वह एक संदेश राम के लिये देती है कि आपने लोकोपवाद के भय से मुझे तो त्याग दिया परन्तु इसो लोकोपवाद के भय से कहीं धर्म को मत छोड़ देना । प्रजापालन में ढील न हो । यह उस सती का चरित्र है जिसने आपत्ति के समय भी पति-हित का ध्यान रक्खा । वास्तव में वह परम शीलवती थी।
७. लव-कुश की उत्पत्ति हो गई। युद्ध के बहाने से नारद ने रामचन्द्र से उनको मिलाया । पति के चरण छू कर सीता भी राम के पास खड़ी हो गई । राम ने कहा देवी, दुर खड़ी रहो, अभी तुम्हारी परीक्षा नहीं हुई है । सीता के सिर पर तो पहाड़ टूट पड़ा। सोचने लगी कि दूसरों को शंका हो तो हो, परन्तु मेरे पतिदेव को भी मेरे शोल पर शंका है । उ, उसो समय संसार से वैराग्य हो गया, परन्तु बोली कि परीक्षा ले लें। ___ दूसरे दिन विशाल अग्निकुंड रचा गया । सीता को उसमें प्रवेश करना था। अपार भीड़ एकत्रित हो रही थी। तभी आकाश में जाते हुवे दो देवों ने इस भीड़ को देगा। जब उन्हें पता लगा कि एक सती के शोल की परीक्षा होने जा रही है तो उन्होंने सोचा कि सती को परीक्षा में सफल होना ही चाहिये, नहीं तो शील का महत्व और महिमा संसार से उठ जाएगी।
(शेष पृष्ठ १३३ पर)
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राजेन्द्र-ज्योति
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