Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
View full book text
________________
भंवरलाल जी छाजेड़ नव अवधि के लिये अध्यक्ष निर्वाचित हुए और उन्होंने अपना कार्यभार सम्हाला ।
पूज्य मुनिराज श्री जयन्ती महा 'मधुकर के रखलाम चातुर्मास में केन्द्रीय परिषद् द्वारा स्थानीय स्तर पर धार्मिक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन हुआ है। साथ ही धार्मिक निबन्ध प्रतियोगिता भी सम्पन्न हुई। परिषद् ने धार्मिक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता की प्राथमिक सफलता से उत्साहित होकर इसे अखिल भारतीय स्तर पर संचालित करने की घोषणा कर दी है। रतलाम चातुर्मास के अन्तर्गत एक दस दिवसीय धार्मिक शिक्षण शिविर का आयोजन परिषद ने श्री राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर त्रिस्तुतिक ट्रस्ट कार्यकर्त्तागण रतलाम के सहयोग से किया है । इस शिविर में तीस छात्रों ने दस दिनों तक ज्ञान की आराधना की। परिषद् द्वारा आगामी शिविर जालोर में आयोजित किया
२६
"मधुकर" मधुमय जीवन कर दो
गुरुदेव के पुण्य प्रताप से
जैन धर्म की जय जय को
जग में गुंजित कर दें !
शोषित, दलित, पतित मानव कोआओ हम सब मिलकर गरिमा से मण्डित कर दें ! अंधकार को मेट मिटाकर
हृदय कलुष को, पापों को आओ हम खण्डित कर दें ! भाव वृद्धि कर शुद्धि के स्वर से - एक हृदय हो जायें हम सब अब तन मन पावन कर लें !
उच्च कोटि के जीवन मूल्य समझकर जागृत पेता होर के हम मधुकर मधुमय जीवन कर दें !
यश-सौरभ से रतन ललाम कोआओ हम सब मिलकर जग मग जग मग हर्षित कर दें ।
-निर्मल सकलेचा
Jain Education International
जा रहा है । साथ ही 'राजेन्द्र ज्योति' के रूप में एक उल्लेखनीय ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय भी महत्त्वपूर्ण है।
परिषद् युवकों की जीवन गंगा बन गई है । समाज के कायाकल्प का प्रतिबिम्ब इसकी हिल्लौरों के साथ धरातल पर चमक रहा है। जीवन के क्षेत्रों से जुड़ी, जीवन के क्षेत्रों में मिली व जोवन के क्षेत्रों से उठी परिषद् एक स्थायी शक्ति के रूप में विकसित हो रही है। युवकों की पंक्तियां इसे अपना रही हैं। युवकों का उन्नत उल्लास इसका श्रृंगार कर रहा है । बाधाओं और प्रतिरोधों की चट्टानें परिषद् प्रवाह की मार से बिखर कर विलुप्त हो रही है। पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का स्वप्न निरर्थक नहीं है, उसका सामाजिक परिपक्व होता जा रहा है । समाज, अब समाज के लिये जिन्दा हो रहा है ।
प्रार्थना
जैन
मुनियों, धर्मगुरुओं, मान की एक किरण देना । कंकर में भी चमन के,
फूल विकसित तुम ही करना ॥ १ ॥
For Private & Personal Use Only
दिव्य ज्योति संघ को देना, माया मोह से इसे हटाना । धर्म की हो जय जयकारी, प्रेरणा ऐसी ही देन
गांव-गांव इस दीप को तुम, प्रज्वलित करते ही रहना । ज्ञान के अन्तर सब को एक करते ही रहना ||३||
पुहासे
॥२॥
उज्ज्वलसी एक किरण देना, अन्धकार से हमें हटाना । धर्म के इस अखण्ड दीप को, ज्योति जगमग करते जाना ॥४॥
- राजमल नांदेचा
राजेन्द्र ज्योति
www.jainelibrary.org