Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
View full book text
________________
आप एक साथ समस्त लोकों का स्वरूप सुस्पष्ट करते हैं। भगवन् आप ही बुद्ध हैं क्योंकि आपके बुद्धि व बोध की विबुधजन अर्चना करते हैं। आप ही शंकर हैं क्योंकि आप भुवनत्रय का शुभ अर्थात् कल्याण करते हैं। और आप ही विधाता ब्रह्मा हैं क्योंकि आपने शिव मार्ग (मोक्षमार्ग) की विधि का विधान किया है इत्यादि ।40 इसका सम्पादन व जर्मन भाषा में अनुवाद डॉ. याकोबी ने किया है। इस स्तोत्र के आधार से बड़े विशाल साहित्य का निर्माण हुवा है। इस पर कोई २०-२५ तो टीकाएं लिखी गई हैं एवं भक्तामर स्तोत्र कथा व चरित्र, छाया स्तवन, पंचाग विधि, पादपूर्ति स्तवन, पूजा, मंत्र माहात्म्य, व्रतोद्यापन आदि भी २०-२५ से कम नहीं हैं। प्राकृत में भी मानतुंगकृत भयहरस्तोत्र पार्श्वनाथ की स्तुति के रूप में रचा गया है ।50 प्रभाचन्द्र ने वृहत स्वयंभू स्तोत्र टीका लिखी है 11 पं. आशाधरकृत सिद्धगणस्तोत्र स्वोपज्ञ टीका सहित तथा भूपाल चतुर्विंशति टीका भी इनके ही द्वारा लिखी बताई जाती है। ५. अलंकार और व्याकरण साहित्य
मालवा के जैन विद्वानों ने अलंकार एवं व्याकरण जैसे विषयों पर भी साहित्य सृजन किया है। प्रभाचन्द्र का शब्दाम्भोजभास्कर एक व्याकरण ग्रन्थ है। पं. आशाधर ने क्रियाकलाप के नाम से व्याकरण ग्रन्थ की रचना की तथा अलंकार से संबंधित काव्यालंकार टीका लिखी ।55 ६. अन्य साहित्य
आचार्य अमितगति की कुछ रचनाएं उपलब्ध नहीं हैं जिनके निम्न नाम हैं :
१. जम्बूद्वीप २. चन्द्रप्रज्ञप्ति-ये दोनों ग्रन्थ सम्भवतः भूगोल विषयक हैं। ३. सार्धद्वय द्वीप प्रज्ञप्ति तथा ४. व्याख्या प्रज्ञप्ति हैं। पं. आशाधर ने आयर्वेद से संबंधित ग्रन्थों की भी रचना की थी। इन्होंने वाग्भट्ट के आयुर्वेद ग्रन्थ अष्टांगहृदयी की टीका "अष्टांगहृदयोद्योतिनी" के नाम से लिखी।
इस प्रकार मालवा में जैन विद्वानों के विविध विषयक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं तथा अभी भी नये-नये जैन विद्वानों के ग्रन्थ प्रकाश में आते जा रहे हैं। यदि समूचे भारतवर्ष के जैन शास्त्र भण्डारों तथा व्यक्तिगत संग्रहालयों में खोज की जाये तो और अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रकाश में आने की संभावना है। इसके अतिरिक्त उपर्युक्त विवरण से एक बात स्पष्ट रूप से विदित हो जाती है कि जितना भी साहित्य जैन धर्म में उपलब्ध है उस समस्त साहित्य का सृजन जैनाचार्यों के द्वारा हवा है क्योंकि वणिक जाति व्यापार प्रधान जाति है इस कारण इस जाति के व्यक्तियों का तो साहित्य सृजन की ओर ध्यान नहीं के बराबर जाता है और यही कारण है कि जैनाचार्यों के द्वारा रचा गया साहित्य हमारे सामने है। उसकी भी विशेषता यह है कि यह साहित्य भी साम्प्रदायिक ग्रंथ तक ही सीमित नहीं रह गया है वरन् साहित्य के विभिन्न अंगों पर इन आचार्यों ने अपने ग्रन्थों की अधिकारपूर्वक रचना कर साहित्य के भण्डार में अभिवृद्धि की है।
संदर्भ ग्रंथों की सूची १. उज्जयिनी दर्शन पृष्ठ ९३ २. श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ पृष्ठ ४५९ ३. वही पृष्ठ ४५९ ४. स्व. बाबू श्री बहादुरसिंहजी सिन्धी स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ १२ ५. संस्कृति केन्द्र उज्जयिनी पृष्ठ ११६ ६. गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५४४ ७. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृष्ठ ८७ ८. संस्कृत साहित्य का इतिहास भाग २ कोथ, पृष्ठ २८६-८७ ९. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृष्ठ ११३-१४ १०. वही पृष्ठ १२१ ११. वही पृष्ठ ८१ १२. संस्कृत साहित्य का इतिहास गैरोला पृष्ठ ३४५ १३. गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५४६ १४. वद्दी पृष्ठ ५४८ १५. भारतीत संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृष्ठ ८९ १६. संस्कृत साहित्य का इतिहास गैरोला पृष्ठ ३५५ १७ वही पृष्ठ ३४६ १८. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृष्ठ ११४ १९. वीरवाणी वर्ष १८ अंक १३ पृष्ठ २१ २०. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृष्ठ १२२ २१. वीरवाणी पृष्ठ २२ २२. गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५४६ २३. जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास देसाई पृष्ठ १७७-७८
भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृष्ठ ३३२ २४. संस्कृत साहित्य का इतिहास गैरोला पृष्ठ ३५१ २५. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृष्ठ ११७ २६. गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५४५-४६ २७. भार. सं. में जैन का योगदान पृष्ट १७७ २८. वही पृष्ठ १९५-९६ २९. वही पृष्ठ १७४ ३०. गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५४६ ३१. संस्कृत साहित्य का इतिहास गैरोला पृष्ठ ३५५ ३२. गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५४५ ३३. भार. सं. में जैन धर्म का यो. पृष्ठ १७८ ३४. दैनिक नई दुनिया दिनांक ९-७-७२ ३५. वही दिनांक ९-७-७२ ३६. भार, सं. में जैन धर्म का यो. पृष्ठ १६४ ३७. गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५४७-४८ ३८. वही पृष्ठ ५५१ ३९. वीरवाणी वर्ष १८ अंक १३ पृष्ठ २२ ४०. जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास पृष्ठ ३९६
राजेन्द्र-ज्योति
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org