Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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मार्गदर्शन कक्षाओं के रूप में ही रहा लेकिन विज्ञान विषय तथा ग्यारहवीं कक्षा और सम्मिलित कर लिये गये । विद्यालय के अनुशासित वातावरण, आधुनिक व्यवस्था तथा उच्च अध्ययन स्तर के कारण इनके प्रति छात्रों का आकर्षण बढ़ने लगा। छात्रों के व्यापक हितों को दृष्टिगत कर विद्यालय ने शासकीय मान्यता के लिये आवेदन कर दिया । १ जुलाई, १९६८ को एक मौन उपलब्धि प्राप्त हुई तथा शासकीय मान्यता से एक नियमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का उदय हो गया। नवीं कक्षा विज्ञान, कला तथा वाणिज्य तीनों विषयों में प्रारम्भ कर दी गई। विद्यालय के पर मजबूती से जमने लगे।
नगर की शैक्षणिक आवश्यकताओं को लेकर लक्ष्मीभूत कर समिति की प्रशासनिक समिति ने पुनः एक महत्वाकांक्षी निर्णय लिया। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय संचालित करने की योजना बनाकर १५ अगस्त १९६९ से ६ ठी, ७ वीं तथा ८ वीं कक्षाओं का प्रारम्भ कर दिया। साथ ही विद्यालय मिडिल परीक्षा केन्द्र के रूप में भी मान्य कर लिया गया। छात्र अपने यशस्वी भविष्य का प्रेरणा केन्द्र सामने देखने लगे । जुलाई १९७० से विद्यालय के अन्तर्गत ग्यारहवीं कक्षा प्रारम्भ कर दी गई। फलतः विद्यालय को कला, वाणिज्य एवं विज्ञान ( प्राणिशास्त्र व गणित दोनों) विषयों में परिपूर्णता प्राप्त हो गई। इसी वर्ष विद्यालय को माध्यमिक शिक्षा मण्डल म. प्र. द्वारा परीक्षा केन्द्र के रूप में भी स्वीकृत कर लिया गया ।
कन्याओं के शैक्षणिक विकास के लिये नगर में स्वतंत्र इकाई की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। समिति ने पुनः कदम उठाया । १ जुलाई १९७१ से जैन कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की गई इसमें अध्ययन व्यवस्था अध्यापिकाओं द्वारा की जाती है जो अपनी पूर्ण योग्यता से कार्यरत हैं । कन्या उ. मा. वि. कला तथा विज्ञान दोनों विषयों के लिये मान्य है । वर्तमान में इसके अन्तर्गत गृह विज्ञान विषय का भी अध्ययन एवं इस हेतु प्रयोगशाला की सुविधा भी है।
गुणात्मक तथा परीक्षा परिणात्मक दृष्टि से विद्यालय मन्दसौर जिले में अपनी सर्वोच्चता का दावा कर सकता है। १९७० तथा १९७१ की मिडिल परीक्षा में इस विद्यालय के छात्रों ने न केवल जिले की मेरिट सूची में प्रथम स्थान प्राप्त किए बल्कि क्रमशः तीन व चार स्थानों पर भी अधिकार किया । १९७१ की संभागीय
बाग नगर में एक जिन मन्दिर है। मूलनायक श्री विमलनाथजी मन्दिर की प्रतिष्ठा संवत् १९६१, मगसर सुदी ५ को आचार्य भगवन्त श्रीमद्विजयजी राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के सान्निध्य में हुई।
(१) संवत् १९७७ में उपाध्यायजी मनमोहनविजयजी दीपविजयजी आदि मुनिमंडल का चातुर्मास आनन्दपूर्वक हुआ ।
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मेरिट सूची में भी विद्यालय के छात्र ने अपने गौरव को उन्नत किया । १९७२ की मिडिल परीक्षा की जिला स्तरीय मेरिट सूची में विद्यालय के दो छात्रों को तीसरे तथा चौथे स्थान पर यशस्विता प्राप्त हुई । १९७३ में एक छात्र को द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ । १९७१ में हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम प्रतिशत के आधार पर जिले के समस्त उच्चत्तर माध्यमिक में सर्वश्रेष्ठ रहा । १९७६ की परीक्षा में ५ वीं तथा ८ वीं बोर्ड के केन्द्र की प्रावीण्य सूची में इस विद्यालय के छात्र सर्वोच्च स्थान पर रहे। प्रत्येक वर्ष स्थानीय व बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम अस्सी से पूरे सौ प्रतिशत रहे । जैन कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का ग्यारहवीं बोर्ड का परीक्षा परिणाम पूरा १०० प्रतिशत रहा। इसका मूल कारण विद्यालय की विशिष्ट पद्धति, नियमित व्यवस्था, सही मार्गदर्शन तथा अध्यापकों का रचनात्मक परिश्रम है । कक्षाओं में छात्रों की संख्या सीमित ही रखी जाती है अतएव सैकड़ों छात्रों को प्रवेश न मिलने के कारण निराश होना पड़ता है। गत वर्ष से अध्यापन शैली से वैज्ञानिक उपकरणों एवं आधुनिक सामग्री का उपयोग भी किया जा रहा है। समिति के पास अपने फिल्म प्रोजेक्टर, एम्प्लीफायर तथा अन्य उपकरण हैं ।
१९७३ में संस्था को महान गौरवशाली उपलब्धि जैन शिक्षा महाविद्यालय के रूप में प्राप्त हुई। विक्रम विश्वविद्यालय ने इसे सम्बद्धता प्रदान कर दी। यह महाविद्यालय क्षेत्र की अपने ढंग की प्रथम संस्था है ।
संस्था के अन्तर्गत भौतिकी, रसायन तथा जैविकी तीनों की स्वतन्त्र एवं सुसज्जित प्रयोगशालाएं हैं। मध्यप्रदेश में कुछ ही उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ऐसे हैं जहां कक्षा ९ वीं से प्रायोगिक सुविधाएं हैं, इस विद्यालय की गणना ऐसे विद्यालयों में है। छात्रों की प्राथमिक कमजोरियों पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाता है । सुलेखन को प्रोत्साहित करने के लिये प्रतिमास स्पर्धाएं आयोजित की जाती हैं। विद्यालय वर्तमान शैक्षणिक जगत के कई दोषों से मुक्त है। इसकी समस्त शाखाएं आदर्श विद्यालयों के रूप में निखरती जा रही हैं।
श्री जैन श्वेताम्बर त्रिस्तुतिक
संस्था ने राजेन्द्र विलास के जीर्णोद्धार की योजना हाथ में ली है जिस पर तीन लाख रुपये व्यय होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त संस्था ने शासन से पौने दो लाख वर्ग फीट भूभाग प्राप्त किया है जिसके सुविकास पर बारह लाख रुपये व्यय होंगे। आशा है समाज का आशीर्वाद संस्था के साथ रहेगा ।
श्रीसंघ, बाग (धार)
( २ ) संवत् १९८१ में उपाध्यायजी श्री यतीन्द्रविजयजी, मुनिश्री वल्लभविजयजी मुनि श्री विद्याविजयजी, मुनिश्री सागरानन्द विजयजी आदि मुनिराज का चातुर्मास आनन्दपूर्वक सम्पन्न हुआ ।
(२) संवत् १९८४ में मुनि श्री अमृत विजयजी मुनि श्री चतुर विजयजी आदि महाराज सा. का चातुर्मास सानन्द सम्पन्न हुआ ।
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