Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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नवयुवक सामाजिक क्रान्ति करें !
प्रकाशचन्द्र काठेड़
नवयुवक समाज का प्राण है' उक्त उक्ति अक्षरशः सही है । आज समाज को नवयुवकों की आवश्यकता है, समाजोत्थान हेतु । समाज पुनर्निर्माण हेतु !! समाज में फैली बुराइयों को दूर करने हेतु !!! नवयुवक ही एक ऐसा माध्यम है जो समाज की आकांक्षाओं को पूर्ण कर सकता है, समाज हेतु अपने परिश्रम व लगन से एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकता है जिसमें संपूर्ण समाज का उत्तम स्वरूप दिग्दर्शित हो।
भगवान महावीर के निर्वाण को आज २५०० वर्ष से अधिक पूर्ण हो चुके हैं । हम उन्हीं के अनुयायी हैं। तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्ञात होगा कि आज हम भगवान महावीर के बताये सिद्धान्तों पर ठीक अमल कर रहे हैं। आज हम एक ऐसे मार्ग की ओर बढ़ रहे हैं जिसका प्रारंभिक मार्ग तो बड़ा सुखद प्रतीत होता है। ___आज हमारा समाज इसी विनाशकारी मार्ग की ओर बढ़ रहा है, अपरिग्रह के सिद्धान्त की जहां दुहाई दी जाती है, वहीं व्यवहार में ठीक इसके विपरीत स्थिति होती है। वर्गभेद स्पष्ट रूप से सामने आ चुका है, अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ती चली जा रही है । प्रत्येक मनुष्य सिद्धान्तों की दुहाई देकर साध्य को भूलकर साधन की पूजा कर रहा है । साध्य को छोड़कर साधन ही सर्वोच्च समझ बैठा है।
इसी प्रकार की अनेक बराइयां आज हमारे समाज में तीव्रता से प्रवेश कर रही हैं । मृत्युभोज में जहां मृतात्मा की शांति के नाम पर हजारों रु. उड़ा दिये जाते हैं । बेरोजगारी आज अत्यधिक मात्रा में फैल चुकी है। आज हमारे समाज के हजारों युवक इसी कारण अपनी प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
दहेज जो आज हमारे समाज में पूर्ण रूप से अपनी विकरालता की जड़ें जमा चुका है । सम्पूर्ण पालकवर्ग त्रस्त है, आज यह
समस्या अनिवार्यता का रूप धारण कर चुकी है । सम्पन्न परिवारों में तो दहेज प्रतिष्ठा एवं सभ्यता का चिह्न माना जाने लगा है। शादी-ब्याह में जहां एक ओर विद्युत की चकाचौंध में हजारों रु. पानी की तरह बहा दिये जाते हैं वहीं दूसरी ओर हमारा एक भाई आखरी बूंद से टिमटिमाते हुवे दीपक में जीने का प्रयास कर रहा होता है।
आज हमारा प्रतिष्ठित वर्ग पाश्चात्य सभ्यता के आकर्षण से आकर्षित होता चला जा रहा है। खेद की बात है कि हमारी युवा शक्ति का एक बहुत बड़ा वर्ग आज उसी का अनुसरण कर रहा है।
आज हमारा समाज संगठनात्मक एवं एकीकृत न होते हवे असंगठित एवं विकेन्द्रित है। फलस्वरूप हम अपने उत्थान एवं विकास के लक्ष्यों को साधनों के होते हुए भी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर सके हैं।
ये चुनातियां हैं ! ये ज्वलन्त समस्याएं हैं !! आज हमारे सामने समाज के सामने समाज आज आव्हान कर रहा है. आज नवयुवकों से कहे वे आगे आवें और इन समस्या एवं चनौतियों के अंधियारे से अपने परिधान, लगन व निष्ठा रूपी प्रकाश का सहारा लेकर सामना करें।
वर्तमान परिस्थितियों में नवयुवकों का दायित्व हो जाता है कि वे आगे आवें, आगे बढ़ें और इन चुनौतियों का एक जट होकर सामना करें।
नवयुवक सुनियोजित एवं सुसंगठित कार्यक्रम बनावें और भगवान महावीर के सिद्धान्तों पर चलते हुए समाज सेवा का प्रण लें, समाज के प्रत्यक वर्ग में समन्वय का प्रयत्न करें । भावी पीढ़ी के लिए एक आदर्श व वर्तमान में समाज का गौरव बनकर युवा शक्ति के आदर्श कार्यों के परिचायक हों। (शेष पृष्ठ २४ पर)
वी. नि. सं. २५०३
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