Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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खुशियों के अम्बार सजाऊं
डा. श्रीमती कोकिला भारतीय
एक तरफ अमीरों के सुख और एक ओर गरीबों की आहे, विलासिता के दौर निहारती, थकित वे थकित भूखी आहे, मन में अर्न्तद्वन्द्व यह चलता दीनों को कुछ दे पाऊँ, प्रेम, दया और स्नेहभाव से खुशियों के अम्बार सजाऊँ।
कभी चाह थी मुझको मानव बनकर जग में आ जाऊं । प्रेम, दया और स्नेहभाव से खुशियों के अंबार सजाऊं ।
पूरी हो गई आखिर मेरी यह अभिलाषा, आ गया इस वसुधा पर लेकर के नव आशा, नव आशा के दीप लिए सोचा मैं राह बनाऊँ, प्रेम, दया और स्नेहभाव से ख्शियों के अंबार सजाऊँ।
और बहुत सी कटुताएं जो जीवन में झंझावत लाती, आपस में बैर ठारू ईर्ष्या, वैमनस्य का राग जगाती, या तो देदे ऐसी शक्ति, इन सबसे मैं उबर पाऊं, प्रेम, दया और स्नेहभाव से, खुशियों के अम्बार सजाऊँ।
लेकिन यह दुनिया है कैसी जहाँ प्रेम का मोल नहीं, धन लिप्सा अरू स्वार्थ भाव में स्नेह दया का नाम नहीं, ऐसे जग के कुचक्रों में, मैं हरदम घिर जाऊँ, प्रेम, दया और स्नेहभाव से खुशियों के अम्बार सजाऊँ।
नहीं दे सकता जो आपस में, सौहार्द्ध और एकता के गुण, शांति, दया और सेव्य भाव से प्रेम दीप जले हरदम, तो जीवन निरर्थक है मैं नश्वरता में खो जाऊँ, प्रेम, दया और स्नेहभाव से खुशियों के अम्बार सजाऊँ ।
उपवास के पूर्ण उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाते और अधिकांश व्यक्ति क्रोध व चिड़चिड़ेपन से इस काल में ग्रसित रहते हैं ।
होना यह चाहिये कि उपवास काल में हम आत्मध्यान करें मैं कौन हूँ--अपने स्व को जानने का प्रयास करें । इस शरीर से भिन्न हमारी आत्मा है उसके निकट यदि हम पहुँचने की कोशिश करें तो एकः स्वगिक शन्ति-वास्तविक शान्ति का स्रोत हमारे हृदय में उठेगा और उस शान्ति की अनुभूति होते ही हमारे हृदय में जो विकार उत्पन्न होते हैं वे स्वतः दूर हो जावेंगे और यही उपवास सही उपवास होगा, वास्तविक उपवास होगा।
उपवास हम हमारी शक्ति के अनुसार करें, चाहे अधिक न करके सिर्फ १ दिन का उपवास करें, वह भी न हो तो आधे दिन का उपवास करें किन्तु उसे सही रूप में वास्तविक उसके उद्देश्य को समझ कर करें तो आधे दिन का इस प्रकार किया गया उपवास आधे माह के सामान्य उपवास से अधिक महत्त्वपूर्ण है । ऐसा उपवास हमें आध्यात्मिकता की ओर ले जावेगा जिससे हमारा आध्यात्मिक विकास होगा और यही आध्यात्मिक विकास मानव शान्ति का द्योतक है । आध्यात्मिक पुरुष के अन्तर में शान्ति का, प्रेम का, त्याग की महत्ता का, मानव के गुणों का अजर, अमर स्स्रोत सदैव बहता रहता है जो मानव शान्ति के साथ ही साथ विश्व शान्ति का पथ-प्रदर्शन का प्रणेता है।
राजेन्द्र-ज्योति
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