Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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सागर, श्री सेफुद्दीन, श्री आ मिल, श्री शहरकाजी, श्री किशोरा मसीह, श्री ब्रह्माकुमारी आशा बहन, श्री रविन्द्र भट्ट ने जो विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि उपस्थित थे, इस अवसर पर हजारों नागरिक उपस्थित थे। सभी ने अपने अपने धर्मों के मत प्रतिपादित किये, एक मंच पर बैठे। पूज्य मुनिराज श्री ने अहिंसा श्रेष्ठ धर्म निरूपित किया। प्रश्न समाधान
चातुर्मास पर्यन्त पूज्य मुनिराज श्री ने धर्म दर्शन संबंधी अनेक प्रश्नों का नियमित रूप से समाधान प्रदान किया। ये समाधान प्रश्न सहित श्यामपट्ट पर अंकित किये जाते रहे। हमने देखा कि कई बालकबालिकाएं इन समाधानों को अपनी पुस्तिकाओं में अंकित करते थे। विभिन्न संघों का आगमन
चातुर्मास पर्यन्त अनेक स्थानों से संघों का आगमन हुआ, पूज्य मनिराज श्री के दर्शन श्रवण हेत् । रतलाम श्री संघ ने उनके स्वागत के भव्य आयोजन किये तथा जिन स्थानों से संघों का आगमन हुआ उनमें बेंगलोर, बम्बई, भीनमाल, नैनावा, रेवतड़ा, कोशिलाव, धानेरा, जालोर, कुक्षी, आलोट, खाचरोद, बाग, थराद, अहमदाबाद, रनाखड़ी, इन्दौर, नीमच, निबाहेड़ा, झाबुआ, अलिराजपुर, रिंगनोद, जावरा, उज्जैन, आहोर, सियाणा आदि प्रमुख हैं।
वर्द्धमान तप नवपद आराधना समारोह
पूज्य मनिराज धी के सान्निध्य में १५० श्रावक श्राविकाओं ने दिनांक १३-१०-७७ को सामूहिक आयंबित तपस्या के साथ वर्द्धमान तप का पाया डालने को आराधनाथियों के साथ की क्रिया की गई । दिनांक १०-१०-७७ से नवपद आराधना आयोजित की गई। इसी अवसर पर श्रीमान रतनलालजी सुराणा परिवार द्वारा नवपद, बीस स्थानक तप उद्यापनार्थ अट्टाई महोत्सव का आयोजन किया गया।
इसके अतिरिक्त चातुर्मास में अनेक कार्य सम्पन्न हुए जिनका लेखा यहां रखना संभव नहीं है । इस विराट कार्य में चातुर्मास समिति, उपाश्रय न्यास, श्री राजेन्द्र जैनन ववक परिषद (केन्द्रीय और स्थानीय) का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रकाश बैण्ड रतलाम (जिसने मुनि श्री मधुकर' के भक्ति काव्य को कंठस्थ कर प्रदर्शित किया था) का उल्लेखनीय सहयोग रहा।
अन्त में मैं पूज्य मुनिराज थी "मधुकर" के प्रति आपकी कृतज्ञता अपति करता हूं जिन्होंने इस चातुर्मास को महत्वपूर्ण तथा ऐतिहासिक बना दिया। मेरा इन्हें शत शत बंदन उनके चरण कमलों में ।
(नवयवक सामाजिक क्रान्ति करें . ' ' ' "पृष्ठ २१ का शेष)
'समाज में नारी का जन्म दुर्भाग्य हैं' की भावना को हटाने का तोबतम प्रयास करें। मृत्युभोज और बेकारी जैसी समस्याओं हेतु योजनाबद्ध कार्यक्रम बनाकर उन्हें वरिष्ठजनों के महयोग से क्रियान्वित किया जावे। प्रत्येक अव्यावहारिक कार्य का बुलंद आवाज के साथ विरोध करें। इसके साथ ही समाज में एक ऐसी सूसंगठित एवं विशाल एकता का निर्माण करें जो अपने आप में एक आदर्श हो।
अब हमें देखना होगा, हमें जानना होगा, समाज की पुकार है । सामाजिक बुराइयाँ हमारी जड़ तक पहुँचकर उन्हें खोखला
करना शुरू कर चुकी हैं, उन्हें जड़ मूल से नष्ट करने हेतु तीव्रतम सुसंगठित प्रयास करना होगा। नवयुवकों को एक सामाजिक क्रांति करना होगी जिसमें संपूर्ण बुराइयों के समाधान हेतु प्रयास हों तथा एक से समाज के पुनःनिर्माण का लक्ष्य हो जिसमें न कोई असमानता हो, न कोई समस्या । अगर नवयवकों ने अपने उच्च आत्म बल, सुसंगठित शक्ति के सहारे इस 'भामाजिक क्रांति' पर अमल किया तो शीघ्र ही एक ऐसे समाज का निर्माण होगा जिनमें संपूर्ण समाज का उच्चतम उज्जवल एवं उतम स्वरूप दिग्दर्शित होगा।
राजेन्द्र-ज्योति
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