Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
View full book text
________________
का निर्माण कार्य गतिशील है। पूज्य आचार्य श्री विद्याचन्द्र सूरीश्वर के उपदेशों से बाहर से धनराशि एकत्रित की जा रही
व्यतीत वर्तमान में आहोर विश्ववंद्य पूज्य जैनाचार्य श्रीमद विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज का सघन विहार क्षेत्र आहोर रहा। आहोर राजस्थान का प्रसिद्ध, ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थल रहा है। स्वर्गीय जैनाचार्यों द्वारा यहां अनेक कार्य सम्पादित हुए हैं।।
त्रिस्तुतिक समाज के लिए आहोर पावन स्थली है। इस नगर में जैन समाज के ७०० कुटुम्ब हैं। (ओसवाल ६००, पोरवाल १००), ५५० पूज्य जैनाचार्य के अनुयायी हैं। श्रीगोडी पार्श्वनाथ जिनालय
यहां बावन जिनालय हैं। इनका निर्माण सं. १९३२ में आरंभ हुआ। माह शुक्ला १० सं. १९३६ में परम आचार्य देव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के कर कमलों से प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई।
मूलनायक प्रतिमा प्राचीनतम है। सं. १९५५ फाल्गुन शुक्ला ५ को पूज्य गुरुदेव द्वारा ९०० बिम्बों की अंजनशलाका हई। यह कार्य शा. मूथा जसरूपजी जीतमलजी बाफना ने करवाया, पार्श्व में भगवान महावीर का मंदिर है। जिसका त्रिशिखरी मंदिर निर्माण शाह मिश्रीमलजी रतनाजी बाफना द्वारा हुआ। प्रतिष्ठा पूज्याचार्य श्रीमद् यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के करकमलों द्वारा वैशाख शुक्ला १९९६ में १४ प्रतिष्ठाएं सम्पन्न हुई ।
पीछे उद्यान में भूपेन्द्र सूरीश्वरजी की समाधि स्थल पर शाह ओटमलजी उदयचन्दजी मांगीलालजी चोपड़ा द्वारा निर्मित छत्री में श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की प्रतिमा स्थापित की गई। __ माह शुक्ला ६ सं. २००१ को शाह परागचन्दजी माणकजी गादिया की ओर से ३०० जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका श्रीमद् यतीन्द्र सूरीश्वरजी के करमलों से सम्पन्न हुई। चौमुखी प्रतिमा की स्थापना हई और शिखर की खोली पर ध्वजदण्ड व कलश चढ़ाया गया है। इस शिखर में एक और शिखर है जो अन्यत्र अप्राप्य है। दादावाडी में धनचन्द्र सूरीश्वरजी तथा भूपेन्द्र सूरीश्वरजी की प्रतिमा स्थापित की गई।
सं. २०२५ में दादाबाड़ी के बाहर शाह घेवरचंदजी रूपराजजी बजावत एवं यवा घेवरचंदजी जेठमलजी द्वारा निर्मित विशालकक्ष में पूज्य राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की जीवनी से संबद्ध चित्रपट विभिन्न श्रावकों द्वारा स्थापित किये गये हैं।
५२ जिनालयों का जीर्णोद्धार संगमरमर के पापाण से किया गया जिसके अठारह अभिषेक एवं सामूहिक उद्यापन वर्तमानाचार्य आचार्य देवश्री श्री १००८ श्री विद्याचंद सुरीश्वर जी महाराज द्वारा फाल्गुन शुक्ला ५ सं. २०२५ को किया गया। जीर्णोद्धार कार्य गतिशील है।
शांतिनाथजी का मंदिर जो धर्मशाला के ऊपर स्थित है, की प्रतिष्ठा सं. १९५९ में पू. राजेन्द्र सूरीश्वरजी के द्वारा को गई थी-का पुनः निर्माण २००७ को सम्पन्न हुआ। मंदिर में प्रतिमाजी मेहमान रूप में विराजमान हैं जिनकी प्रतिष्ठा होना अवशेष है। यहां पूज्य गुरुदेव द्वारा उन्हीं की मूर्ति (पूज्य राजेन्द्र सूरीश्वरजी की) स्थापित है। इन दोनों मंदिरों की व्यवस्था श्री सौधर्म वृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक संघ के अधीन है
और पंजीयन किया गया है जिसके प्रमुख मूथा पुखराजजी जुहारमलजी थे और आज धी गोड़ी पार्श्वनाथ पेढ़ी के नाम से प्रचलित हैं इसके ट्रस्टी निम्नानुसार हैं:१. सेठ हस्तीमलजी जसराजजी लूनिया २. मूथा घेवरचंदजी जेठमलजी बाफना ३. शाह रूपराजजी चुन्नीलालजी वजावत ४. शाह सुमेरमलजी जांवतराजजी तलावत ५. शाह छगनराजजी कनीरामजी तलावत ६. चम्पालालजी भीमराजजी तिलेसरा ७. शाह भबूतमलजी गुणेशमलजी तलावत ८. कोठारी हेमराजजी मुखराजजी ९. शाह छगनराजजी हरकचंदजी बाफना १०. शाह हस्तीमलजी सिरेमलजी कुहाड ११. शाह भबूतमलजी जांवतराजजी पोरवाल
प्रबन्धक शाह रिखबचन्दजी लुम्बाजी पोरवाल हैं। श्री राजेन्द्र जैनागम बृहत ज्ञान भण्डार ___ "ज्ञान भण्डार" सं. १९५९ में आचार्य देव श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से शाह. रेवताजी बरदाजी कडोद (मालवा) वाला ने निर्माण कराया। इसमें ग्रंथागार ३००० पाण्डुलिपियां तथा मुद्रित ग्रंथ हैं। इसकी व्यवस्था मथा शांतिलालजी बाफना के अधीन है। जैन धर्मशाला
यह धर्मशाला बड़ी धर्मशाला के सम्मुख है। इसका निर्माण शाह छोगालालजी जेठमलजी ने कराया है। अम्बिका भवन
इस भवन का निर्माण शाह प्रेमचन्दजी छोगालालजी ने कराया। इस भवन में श्री नवयुवक सेवा संघ का कार्यालय है और समाज की सेवा में रत है। श्री गोड़ी पार्श्वनाथ पेढ़ी भवन
पेढ़ी का भवन बाजार में स्थित है। जिसकी स्थापना पू. गुरुदेव प्रभु श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वरजी के उपदेश से सं. १९५५ में की गई। इसका जीर्णोद्धार मंडोत रामचन्द्रजी छगनलालजी घेवरचन्दजी ने कराया। यह पेढ़ी का कार्यालय है।
१४
राजेन्द्र-ज्योति
Jain Education Intemational
Jain Education Intermational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org