Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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२०३३ मुनिराज श्री जयंतविजयजी के सान्निध्य में शाह कुन्दनमलजी, जुगराजजी कांतिलालजी महेन्द्रकुमार भूताजी ने छरिपातला संघ पालीताना हेतु निकाला । यह आहोर के इतिहास में प्रथम कार्य सम्पन्न हुआ । इसके अतिरिक्त छोटी-छोटी यात्राएं सम्पन्न हुई जिनका उल्लेख यहां संभव नहीं है ।
मेले का आमंत्रण
शाह पुखराजजी केसरीमलजी ने नाकोडा तीर्थस्थल पर पौष कृष्णा १० को एवं शांतिलालजी, मांगीलालजी, लक्ष्मणाजी ने चैत्र शुक्ला १५ को भाण्डपुर मेले का निमंत्रण देकर स्वधर्मी भक्ति का लाभ लिया।
वीरास्थानक महोत्सव
इस नगर में अनेक वीरा स्थानक के अनेक उद्यापन हुए जिनका उल्लेख यहां संभव नहीं है ।
भगवान शांतिनाथ जिनालय'
५०० वर्ष प्राचीन श्री शांतिनाथ जिनालय स्थापित है ।
राजस्थान स्थित आहोर के निकट गुडाबालोतान में जैन समाज के १०० कुटुम्ब हैं । स्वर्गीय आचार्य देव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वर ने सं. १९४८ में चातुर्मास किया और उनके उपदेश से भी धर्मनाथ स्वामी का मंदिर शाह दोलाजी भेराजी ने निर्माण कराया । इस जिनालय की प्रतिष्ठा माह शुक्ला ५ सं. १९५९ में उपाध्याय मोहन विजयजी के करकमलों से सम्पन्न हुई ।
वि. सं. १९६४ में उ. श्री धनविजयजी म. का चातुर्मास हुआ । जिनालय के चारों ओर बार देवकुलिकाएं और गुरु मंदिर की प्रतिष्ठा माह सुदी १३ सं. २००४ को श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी के कर कमलों से सम्पन्न हुई । प्रतिष्ठा का व्यय शाह राजमलजी केसरीमलजी ने किया ।
दो देवकुलिकाएं शाह श्री रतनचन्द जीवाजी ने शुभ खाता द्रव्य से, एक देवकुलिका शाह फूलचन्दजी चमनाजी ने एवं एक देव कुलिका शाह मगनराजजी मनरूपजी ने एवं गुरु मंदिर का शाह श्री राजमलजी केसरीमलजी ने बीस स्थानक उद्यापन के निमित्त निर्माण कर श्री संघ को भेंट किया।
सं० २०१९ में उपधान व्रत का आयोजन शाह रतनचन्दजी जीवाजी ने सम्पन्न कराया जिसमें लगभग ३०० आराधक थे । चौमुखी मंदिर गौख में रतनचन्दजी ने निर्माण कराया । प्रतिष्ठा उपधान संघ प्रमुख मुनिराज श्री विद्याविजयजी द्वारा सम्पन्न हुई ।
सं० १९८९ में पू० आचार्य श्री भूपेन्द्रसूरीश्वर एवं उपा० श्री यतीन्द्रविजयजी के सान्निध्य में शा. लालचन्द्र लखमाजी ने उपधान तप कराया ।
वी. नि. सं. २५०३ / ख ३
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इस जिनालय की व्यवस्था संपूर्ण नगर के अन्तर्गत है तथा इस मंदिर के ट्रस्टी श्री छगनराजजी चुन्नीलालजी बाफना हैं।
उपाश्रय
गुडाबालोतान
त्रिस्तुतिक समाज का एक उपाश्रय है जिसमें मणिभद्रजी की प्रतिमा स्थापित है।
इसके अतिरिक्त नगर में विमलनाथजी का मंदिर, पार्श्व वाडी एवं पूनमीया गच्छ का उपाश्रय है। सीमंधर स्वामी का एक आकर्षक और आधुनिक जिनालय है जिसकी व्यवस्था श्रीमद् राजचन्द्र के अनुयायी के अन्तर्गत है ।
नगर में एक दादावाड़ी है जिसे वेद मूथा चंदनमलजी नवाजी ने बनवाई है ।
बस स्टैण्ड के निकट अत्यधिक आधुनिक धर्मशाला का निर्माण किया गया है जिसमें स्वधर्मी बंधुओं के ठहरने की समुचित व्यवस्था है।
मोतीलाल सरदारमसजी संघवी
सं० १९८४ में उपाध्याय मुनि श्री यतीन्द्रविजय का चातुर्मास शाह जीवाजी लखाजी ने करवाया तथा उनके उपदेश से छः रि पालणा संघ नाकोड़ा जैसलमेर संघ निकाला । सं. २०१२ में चैत्र सुदी १३ को केसरियाजी संघ रेल-मोटर द्वारा निकला। इस संघ में मुनिराज श्री विद्याविजयजी म एवं मुनिराज श्री जयन्तविजयजी फालना पर्यन्त साथ रहे। इस संघ में ९०० जन थे तथा संचालन श्री रतन चन्दजी जीवाजी ने किया ।
वि० सं० २०२३ जेठ सुदी २ शाह श्री राजमलजी ने श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वर के वरदहस्त से दीक्षा ग्रहण कर मुनि विनयविजय नामकरण हुआ ।
यहां श्री यतीन्द्र सूरि ज्ञान मंदिर है जिसमें अनेक पाण्डुलिपियां तथा मुद्रित ग्रंथ हैं । आचार्य देव यतीन्द्रसूरीश्वर की सद्प्रेरणा से शाह गुलाबचन्दजी केसरीमलजी ने छात्रावास का निर्माण कराया और अद्यपर्यन्त संचालन कर रहे हैं। छात्रावास उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है ।
ज्येष्ठता सं० २०२४ को माह कुंदनमलजी गुलाबचन्द ने वीरास्थानक तप का उद्यापन किया । सं० २०२५ में शाह पूनम चन्दजी खसाजी एवं मोतीचन्दजी खसाजी ने वीरास्थानक तप का उद्यापन सम्पन्न कराया। सं० २०२६ में शाह गेनमलजी मकाजी ने वीरास्थानक तप का उद्यापन एवं अठारह अभिषेक करवाए ।
माह छोगमलजी धूलाजी की धर्मपत्नी श्रीमती भूरीवाई ने भद्रेश्वर संघ ४ बसों से निकाला । धर्मनाथजी प्रदिर के नीचे पौषध शाला का निर्माण शाह रतनचन्दजी जीवाजी ने करवाया ।
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