Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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जागृत हुई शुभ भावना तब संघ ने था यों कहा, हम भीनमाल निवासी विनती कर रहे गुरु से यहां || मंदिर बने कई वर्ष बीते अब प्रतिष्ठा कीजिये यह कार्य कर गुरुदेव हमको मुक्ति ऋण से दीजिये ।। २३ ।।
वह वर्ष हर्षित कर गया जब मुहूर्त मुनिवर ने दिया, वर अस्त उदयाचल दिशा में चैत्य जिन उत्सव किया || दोनों जिनालय वीर जिनके की प्रतिष्ठा वीर की, गुरु आण धारक, संघ, प्रमुख शांत मुद्रा धीर की ||३४||
उपधान करवाया पुडा में वास चातुर्मास का, उपधान करवाया सिवाणा योग था उल्लास का ।। सूरी प्रतिष्ठा हुई अनुपम और कीनी पादरू, सब संघ में आनन्द छावा धन्य मुनि शम सागरू ||३५||
कर भीनमाल चौमास विचरे भूमि मनहर मालवा, यात्रार्थ गुरु-भू-तीर्थं पावन कर्म कष्मल टालवा || गुरु सप्तमी उत्सव मनाय संप ने मिलकर वहां, श्री मोहनखेड़ा धाम सा अन्यत्र आनन्द है कहां ||३६||
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संघ प्रमुख विद्या विजयजी योग्य पद आचार्य के, निर्णय किया करना विभूषित प्रकट गुण है आर्य के || निर्मित हुआ तैयार जय गुरुदेव मंदिर भव्य था, करना प्रतिष्ठा थी उसी की दर्शनीय वर नव्य था ।। ३७।।
द्विसहस्र विशति वर्ष फाल्गुन षष्ठ तिथि जयकार है, गुरुदेव सूरि यतीन्द्र ज्ञानी विश्वजन आधार है ।। उनकी प्रतिष्ठा हो रही थी पाट उत्सव भी तथा, था गीतवर संगीत मुखरित साज अभिनव सर्वथा ||३८||
शुभ लग्नवर नवमांश में गुरुमूर्ति को स्थापित किया, श्रीमद् विजय विद्याचन्द्रसूरि नाम उद्घोषित किया || आचार्य पद आसीन होकर सर्व को दी देशना, गुरु गच्छ की प्रगति सदा हो संघ में सद्भावना ||३९|| पुष्पाकुमारी को मुदीक्षा दी हुई प्रियदर्शना विश्राम कर कुछ राजगढ़ फिर की मरुधर स्पर्शना ।। आहोर में पुखराज जी को दी सुदीक्षा थी मुदा, दिया शुभ नाम मुनि रामचन्द्र हो विजय गुरु सर्वदा ||४०||
था मोहन खड़ा में किसी परिषद अधिवेशन यदा, राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद कार्यकर आये तदा ।। तब कहा था सूरीश ने शिक्षा प्रसारण चाहिये, रख विनय विवेक व धर्मनीति सर्व बढ़ते जाइए ||४१ ||
"विद्या विनोद" है भाग दो चली लेखनी भक्ति प्रति, "जिनदेव स्तुति" "भूपेन्द्रसूरि गीत पुष्पांजलि" तति ॥ "शास्त्रार्थ दिग्दर्शन" तथा "श्री यतीन्द्र वाणी" है लिखे, सबके विषय हैं भिन्न पर नहि न्यूनता कोई दिखी ||४२ ||
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है काव्य “श्री शिवादेवीनंदन" और "आदीश्वर" लिखा, सु " दशावतारी" काव्य सुन्दर क्षयोपशम उसमें दिखा ।। श्रीचरण तीर्थंकर महावीर रचना दिव्य है,
"श्रीमद् यतीन्द्र सूरि" काव्य शुभ दृष्टि में अति नव्य है ||४३||
भूती नगर दीक्षा दिलाई भाई चुन्नीलाल को, खिमा विजय दिया नाम उनका और संयममाल को |
दी डूडसी में सोनजी को भागवति दीक्षा यदा, चेतन विजय मुनि नाम दे मंदिर प्रतिष्ठा की तदा ||४४ ॥
चौमास कर वर धाण सापुर संघ को प्रेरित किया, यात्रार्थ शत्रुंजय पधारे वासवर्षा तय किया || चौमास कर विचरे वहां से तीर्थ शंखेश्वर प्रति, है पांच दीक्षा नगर थिरपुर शीघ्र जाना था अति ।। ४५ ।।
वी पुण्यवंता बालिकाएं दी गई दीक्षा तदा, कनकप्रभा किरणप्रभा श्री और कल्पकलता मुदा ।। हेमलता कुशलप्रभा श्री नाम जो सबके दिये, था वृन्द साध्वी मुक्ति श्री जी आद्य श्रमणी को लिए ||४६ ॥
दीक्षा गुडा दी राजमलजी नाम विनय विजय दिया, विहार कर गये राजगढ़ थे चातुर्मास वहां किया || गुरु सप्तमी कर बाग कुक्षी रिंगनोद पधारते, ध्वजदण्ड आरोहण प्रतिष्ठा संघ कार्य सुधारते ||४७||
दीक्षा दिलाई कुक्षी में थी बाई सज्जन को तदा, दे नाम चन्दन श्री वहां पर कार्य पावन सर्वदा || यात्रार्थ तालनपुर गये तब श्रमण श्रमणी सर्व थे, श्रावक तथा श्री श्रविकाएं पूज्य श्री गत वर्ष थे ।।४८ ।।
संयम दिया ज्योति मयाचंद साधुजन मन रंग में, कोमल लता केवल विजय वर नाम सब उछरंग में ।। श्री भीनमाल कुमारिकाएं तीन को दीक्षित ि शुभ सद्गुणाची वन सुनंदा नाम सुमंगल दिया ॥४९॥ कर बोरटा में जिन प्रतिष्ठा कीर्ति गुरु जग जोर में, बस्तीमल से कीर्ति विजय जी दीक्ख दी आहोर में ।। हुई विनती संघ की मान्य कर चौमास सियाणा पुनि, चरित्र नथमल को दिया शुभ नाम रवीन्द्र विजय मुनि ॥५०॥
उन्नति, पश्चात् चौमासा पादरू में नित्य संघ की संयम दिया था छगनजी को हेमविजय शुभ थी मति ॥ जा सिद्धगिरि की छांव में चौमास चंपावास में, करवा सुखद उपधान मोहनखेड़ा वर करके अवति नगरी में फिर
चातुर्मास में दशपुर तथा आलोट में की प्रभु प्रतिष्ठा खास को ॥ आलोट में, कैलाश श्री को आपने संयम दिया, विहार करके आये मरुधर संघ ने स्वागत किया ।।५२.०
राजेयोति
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उल्लास में ।। ५१ ।।
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