Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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स्याद्वादमं.
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| तथा च स एवाह - " शब्द कारणत्ववचनात्संयोगविभागौ ” इति । नित्याऽनित्यपक्षयोः संवलितत्वमेतच्च लेशतो भावितमेवेति ।
यहा “भाप्यकारने जो परमाणुद्रव्य और कार्य रूपसे विषयका भेद कहा है अर्थात् नित्यका विषय परमाणुद्रव्यरूप पृथ्वी और अनित्यका विषय कार्यरूप पृथ्वी मानी है । इसकारण नित्य और अनित्य इन दोनो धमका अधिकरण ( पृथ्वीरूप धर्मी ) एक नहीं है" ऐसा न कहना चाहिये । क्योंकि, पृथिवीत्वका अव्यभिचार है । अर्थात् पृथिवीत्व जो है, वह परमाणुरूप तथा कार्यरूप दोनों पृथिवियोंमें ही वर्त्तमान है । जल आदिकमें भी उन्होने इसीप्रकार नित्य तथा अनित्य रूप दोनों धर्म माने है । और सयोग तथा विभागको स्वीकार करनेके कारण उन्होंने आकाशमें भी युक्ति अनित्यता मानी ही है । | सो ही आकाशमें सयोग और विभागको स्वीकार करनेके लिये प्रशस्तभाप्यकार कहते है कि, " आकाश शब्दका कारण हैं, इस वचनसे आकाशमें संयोग और विभाग है ।" और इस कथनसे आकाश नित्य तथा अनित्य इन दोनों पक्षोंमें ही मिला हुआ है अर्थात् नित्य अनित्य रूप है । यह आशय किंचितमात्र भाष्यकारने प्रकट किया ही है ॥
प्रलापप्रायत्वं च परवचनानामित्थं समर्थनीयम् । वस्तुनस्तावदर्थक्रियाकारित्वं लक्षणम् । तच्चैकान्तनित्याsनित्यपक्षयोर्न घटते । अप्रच्युताऽनुत्पन्नस्थिरैकरूपो हि नित्यः । स च क्रमेणार्थक्रियां कुर्वीत, अक्रमेण वा । अन्योन्यव्यवच्छेदरूपाणां प्रकारान्तरासम्भवात् । तत्र न तावत्क्रमेण । स हि कालान्तरभाविनीः क्रियाः | प्रथम क्रियाकाल एव प्रसह्य कुर्यात् । समर्थस्य कालक्षेपायोगात् । कालक्षेपिणो वाऽसामर्थ्यप्राप्तेः । समर्थोऽपि | तत्तत्सहकारिसमवधाने तं तमर्थ करोतीति चेत्-न तर्हि तस्य सामर्थ्यम् । अपरसहकारिसापेक्षवृत्तित्वात् । | सापेक्षम समर्थमिति न्यायात् ।
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उन वादियोके वचन प्रलापके समान है, ऐसा जो आचार्यने कहा है, उसका समर्थन इस प्रकार करना चाहिये । "अर्थक्रियाको जो करै वह वस्तु ( पदार्थ ) है" यह पदार्थका लक्षण है । और वह लक्षण एकान्त नित्य तथा एकान्त अनित्य इन दोनों 1 परस्परष्टथक्भूतानां क्रियाणां ।
रा. जै.शा.
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