Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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यदि तुम प्रतीतिको ही प्रमाण करते हो तो बिना किसी बाधाके ज्ञानस्वरूप ही आत्मा सिद्ध होता है । क्योंकि, ' मै स्वयं अचेतन इं, चेतना ( ज्ञान ) के योगसे चेतन हुआ हूं, अथवा मुझ अचेतन आत्मामें चेतनाका समवाय है; ऐसी प्रतीति कदाचित् भी नही होती है । कारण कि 'मैं ज्ञाता ( जानने वाला ) हूं' इस प्रकारकी समान अधिकरणपनेरूप प्रतीति होती है । यदि कहो कि;यह प्रतीति आत्मा और ज्ञानके भेद होनेपर भी हो जावेगी । सो नहीं । क्योंकि, कथंचित् तादात्म्य ( अभिन्नता ) के अभावमें सामानाधिकरण्यप्रतीति कहीं भी देखनेमें नहीं आती है अर्थात् जब किसी न किसी प्रकारसे एककी दूसरेके साथ अभिन्नता होती है; तभी उन दोनोंके समान अधिकरणपनेरूप प्रतीति होती है । और जो पुरुष यष्टि है अर्थात् यह पुरुष यष्टि ( लाठी व लकड़ी ) रूप है; इत्यादि प्रतीति होती है; वह पुरुष और यष्टिके परस्पर भेद होनेपर भी उपचारसे देखी जाती है । और | 'पुरुष यष्टि है' यह प्रतीति तत्त्वरूप अर्थात् यथार्थ नही है । तथा पुरुषके यष्टिमें प्राप्त स्तब्धता आदि गुणोंसे जो अभेद है; वही उपचारका कारण है । क्योंकि, उपचार मुख्य अर्थको स्पर्श करनेवाला होता है । भावार्थ- पुरुष यष्टि है; इस प्रतीतिमें यद्यपि पुरुष और यष्टि दोनों भिन्न २ है; तथापि यष्टिके जो स्तब्धता आदि गुण है; वे पुरुषमें भी है; अतः यष्टिके स्तव्ध - ता आदि मुख्य गुणोंको ग्रहण करके पुरुषमें यष्टिका उपचार किया गया है । और जैसे ' पुरुष यष्टि है' यह प्रतीति | पुरुषमें स्तब्धता आदि गुणोंसे कथंचित् यष्टिरूपता जनाती है, उसी प्रकार 'मै ज्ञाता हूं' यह प्रतीति आत्मामें कथंचित् चैतन्यरूपता द्योतित करती है। क्योंकि, उस चैतन्यरूपताके चिना 'मै ज्ञाता हूं' ऐसी प्रतीति उत्पन्न नही होती है । घट आदिके समान । क्योंकि; अचेतनरूप घट 'मै ज्ञाता हूं' इस प्रतीतिको नही करता है । और 'मै ज्ञाता हूं ' ऐसी प्रतीति आत्माके होती है; अतः ' आत्मा कथंचित् चेतनरूप है ' यह निश्चित होता है । यदि कहो कि; घटमें चैतन्य ( ज्ञान ) का योग नही है अर्थात् घटमें ज्ञान समवायसंबंधसे नही रहता है; इसकारण घट 'मैं ज्ञाता ' ऐसी प्रतीति नही करता है; सो नहीं । क्योंकि; अचेतनके भी चैतन्यके योगसे 'मै चेतन हूं' ऐसी प्रतीति होती है " यह जो तुम्हारा अङ्गीकार ( मत ) है; उसका अभी | ऊपर ही खंडन कर चुके है । इस प्रकार जड़ आत्माके सिद्ध हुआ अचेतनपना आत्माके विषयज्ञानको दूर करता है । और जो | आत्माके पदार्थका ज्ञान चाहता है; उसको आत्माके चैतन्यस्वरूपता स्वीकार करनी चाहिये । भावार्थ – अचेतन आत्मा पदार्थको