Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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है। क्योंकि इन तीनों धर्मों के लक्षण परस्पर भिन्न है। जैसे रूपगुणका लक्षण भिन्न होनेसे वह द्रव्यके संपूर्ण धर्मोंसे भिन्न होता है। इनका भिन्न भिन्न लक्षण भी असंभव नहीं है । असत् आकारका उपजना तो उत्पत्तिधर्मका लक्षण है तथा विद्यमान आकारका वियोग होजाना व्यय खभावका लक्षण है तथा द्रव्यरूपकी अपेक्षा कभी भी नष्ट न होकर सदा अपने संपूर्ण पर्यायोंमें वर्तना स्थिरताका किंवा प्रौव्यधर्मका लक्षण है। तीनों धर्मोके ये लक्षण परस्पर जुदे है तथा इन लक्षणोंकी प्रतीति संर
मनुष्योंको सदा ही होती है। K न चामी भिन्नलक्षणा अपि परस्पराऽनपेक्षाः खपुष्पवदसत्त्वापत्तेः । तथा हि । उत्पादः केवलो नास्ति स्थि-17
तिविगमरहितत्वात् कूर्मरोमवत् । तथा विनाशः केवलो नास्ति स्थित्युत्पत्तिरहितत्वात् तद्वत् । एवं स्थितिः || केवला नास्ति विनाशोत्पादशून्यत्वात्तद्वदेव । इत्यन्योऽन्यापेक्षाणामुत्पादादीनां वस्तुनि सत्त्वं प्रतिपत्तव्यम् । तथा // allचोक्तं “घटमौलिसुवर्णार्थी नाशोत्पादस्थितिष्वयम् । शोकप्रमोदमाध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् । १। पयोव्रतो INन दद्ध्यत्ति न पयोऽत्ति दधिव्रतः। अगोरसवतो नोभे तस्माद्वस्तु त्रयात्मकम् । २॥” इति काव्यार्थः।
परस्पर भिन्न भिन्न लक्षणवाले होकर भी ये तीनों एक दूसरेकी अपेक्षारहित स्वतत्र सिद्ध नहीं है; नहीं तो आकाशके फूलोंकी तरह कुछ ठहर ही नहीं सकते । यही दिखाते है। जिसमें स्थिति विनाश न हों ऐसा कोई उत्पाद धर्म अकेला नही है । जिस प्रकार कछुएकी पीठपर वालोका नाश तथा वालोकी स्थिति नहीं है इसलिये उनकी उत्पत्ति भी अकेली नहीं है। तथा स्थिति और उत्पत्ति रहित नाश भी कही अकेला नही रहता है । इसी प्रकार केवल स्थिति भी कोई चीज नही है। इन दोनो अनुमानोमें भी कछुएकी पीठपरके बाल ही उदाहरणरूप ह । अर्थात् जिस प्रकार कछुएपर वाल नही होते उसी प्रकार स्थिति, उत्पत्ति, विनाश ये तीनों धर्मोमेंसे विना दो धर्मोके अकेले किसी धर्भका भी रहना सभव नहीं है। इस प्रकार सदा संपूर अपेक्षा लेकर ही प्रत्येक धर्मका रहना सिद्ध होता है । श्रीसमन्तभद्र स्वामीने ऐसा ही कहा है "सुनारकी दुकानपर तीन मनुष्य सुवर्ण खरीदनेकी इच्छासे आये परंतु उनमेंसे एक मनुष्यको तो सुवर्णके बने हुए कलशकी, दूसरेको सुवर्णके मुकुटकी तथा तीसरेको साधा सुवर्ण लेनेकी इच्छा थी । वहा आकार तीनोने सुवर्णका बना हुआ कलश तोड़ते हुए तथा मुकुट बनाते हुए सुनारको देखा तो उनके चित्तमें तीन प्रकारके परिणाम जुदे जुदे हुए। ये तीन प्रकारके परिणाम जो तीनोके हुए वे