Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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रा.जै.शा.
याद्वादम.
॥१९४॥
तथा उत्तरका आत्मा उसका उपादेय है । अर्थात् कार्य है। सो कार्यकारणोमें ऐसा नियम होता है कि जैसा उपादान कारण होगा तैसा ही कार्य उपजैगा । इसलिये जो आत्मा सुखी है उसके अनंतरका आत्मा कभी दु.खी नही होसकैगा और जो पहिला) । दुःखी है उससे आगेका आत्मा कभी सुखी नही होसकैगा; नहीं तो यदि सुखीसे दुःखी तथा दुःखीसे सुखी भी होजायगा तो
उपादानके समान ही कार्य होता है ऐसा नियम नही रह सकैगा । इसीप्रकार पुण्यपापमें भी समझना चाहिये । अर्थात् जिसके पास पुण्यका संचय है उसके पास कभी पापका संचय नही होसकैगा तथा जो पापी है वह कभी पुण्यात्मा नही होसकैगा; नही तो उपादानकारणसदृश ही कार्य होता है ऐसा नियम टूट जायगा । ऐसे दोष आनेसे क्षणिक मानना व्यर्थ है।
एवं वन्धमोक्षयोरप्यसंभवः। लोकेऽपि हि य एव वद्धः स एव मुच्यते । निरन्वयनाशाऽभ्युपगमे चैकाधिकरणत्वाऽभावात्सन्तानस्य चावास्तवत्वात् कुतस्तयोः संभावनामात्रमपीति? परिणामिनि चात्मनि स्वीक्रियमाणे
सर्व निर्वाधमुपपद्यते " परिणामोऽवस्थान्तरगमनं न च सर्वथा ह्यवस्थानम् । न च सर्वथा विनाशः परिणामम स्तद्विदामिष्टः" इति वचनात् । y इसीप्रकार बंध मोक्ष मानना भी नहीं बनसकता है । संसारमें भी जो प्रथम बँधा होता है वही कदाचित् छूटता है । जब नाश होनेपर कुछ भी नही बचता है किंतु सर्वथा नाश होजाता है ऐसा मानागया है तो बँधनेवाला तथा छूटनेवाला ये दोनो एकरूप नही कहेजा सकते है । तथा संतान भी कोई सच्ची वस्तु नही है इसलिये बंधमोक्षकी संभावना भी करना
असंभव है । और यदि एक ही आत्मा मानकर प्रतिक्षण नवीन नवीन उत्पन्न होनेवाले तथा पूर्वपूर्वके नष्ट होनेवाले जो है उनको * उस आत्माके परिणामविशेष ही बौद्ध मानते हों तो सभी निर्वाध सिद्ध होजाता है। ऐसा कहा भी है कि "एक अवस्थाको छोडकर दूसरी अवस्था धारण करनेका नाम परिणाम है । न तो कोई भी द्रव्य सदा कूटस्थ एक अवस्थाविशिष्ट ही रहती है और न सर्वथा सदा विनाश ही होता रहता है। किंतु प्रत्येकका परिणमन या पर्याय होते रहना ही विद्वानोंको इष्ट है।
पातञ्जलटीकाकारोऽप्याह " अवस्थितस्य द्रव्यस्य पूर्वधर्मनिवृत्ती धर्मान्तरोत्पत्तिः परिणामः" इति । एवं 9. सामान्यविशेषसदसदभिलाप्याऽनभिलाप्यैकान्तवादेष्वपि सुखदुःखाद्यभावः स्वयमभियुक्तैरभ्यूह्यः।
पतञ्जलिके ग्रन्थकी टीका करनेवालेने भी कहा है कि " ध्रुवपरिणामविशिष्ट वस्तुमें एक धर्मका विलय होकर दूसरे धर्मका
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