Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 343
________________ वस्तुतत्त्वं चोत्पादव्ययधौव्यात्मकम् । तथा हि । सर्वं वस्तु द्रव्यात्मना नोत्पद्यते विपद्यते वा परिस्फुटमन्वयदर्शनात् । लूनपुनर्जातनखादिष्वन्वयदर्शनेन व्यभिचार इति न वाच्यं; प्रमाणेन वाध्यमानस्याऽन्वयस्याऽपरिस्फुटत्वात् । न च प्रस्तुतोऽन्वयः प्रमाणविरुद्धः सत्यप्रत्यभिज्ञानसिद्धत्वात् " सर्वव्यक्तिषु नियतं क्षणेक्षणेऽन्यत्व - मथ च न विशेषः । सत्योश्चित्यपचित्योराकृतिजातिव्यवस्थानात्” इति वचनात् । ततो द्रव्यात्मना स्थितिरेव सर्वस्य वस्तुनः । पर्यायात्मना तु सर्व वस्तुत्पद्यते विपद्यते च अस्खलितपर्यायानुभवसद्भावात् । न चैवं शुक्ले शङ्खे पीतादिपर्यायाऽनुभवेन व्यभिचारस्तस्य स्खलद्रूपत्वात् । न खलु सोऽस्खलद्रूपो येन पूर्वाकारविनाशाऽजहधृ| तो त्तराकारोत्पादाऽविनाभावी भवेत् । न च जीवादौ वस्तुनि हर्पामपदासीन्यादिपर्यायपरम्परानुभवः स्खलद्रूपः | कस्यचिद्वाधकस्याऽभावात् । वस्तुका स्वरूप उत्पाद व्यय धौव्य सहित ही है । सभी वस्तु द्रव्यखभावसे न तो उपजती है और न विनशती है । क्योंकि अपने प्रत्येक पर्यायमें द्रव्यका परिवर्तन प्रत्यक्ष दीखता है । ' जो नख केशादिक काटनेपर भी बढ जाते है वे भी पहिलेकेसे ही दीखते हैं परंतु यथार्थमें वे जिस प्रकार दूसरे है उसी प्रकार सभी पर्याय जो उत्पन्न होते है वे नवीन ही होते हैं । उनमें पहिले द्रव्यका परावर्तन मानना मिथ्या है ' ऐसी शंका करना अयोग्य है । क्योंकि; नख केशादिकोमें तो | विचारने पर प्रमाणसे बाधा दीखती है इसलिये वहांपर फिरसे उपजे नख केशादिक पहिलोंकी अपेक्षा भिन्न ही है परंतु जहां पर द्रव्यका अपने प्रत्येक पर्यायो में पहुंचते रहना प्रत्यक्ष अनुभवमें आता है वहां पर भी द्रव्यका परावर्तन न मानना बड़ी मूर्खता है । प्रत्येक वस्तु में पूर्व द्रव्यका अनुवर्तन होना कुछ प्रमाण बाधित नहीं है । क्योंकि; पहिले जिसको देखते हैं उसको दूसरे समय देखने पर | ऐसा सच्चा प्रत्यभिज्ञान ज्ञान प्रकट होता है कि यह वही है जो पहिले देखा था । ऐसा कहा भी है कि " संपूर्ण व्यक्तियोंमें सदा क्षण क्षण में कुछ भेद होता रहता है परंतु सर्वथा भिन्नता नही होती है । क्योंकि; आकार तथा जातिका ही फेर फार होता | दीखता है । भावार्थ- द्रव्यका संपूर्ण नाश कभी नहीं होता है ।" इसलिये द्रव्यखरूपकी अपेक्षा सभी वस्तु सदा स्थिर है । पर्यायोंकी अपेक्षा सभी वस्तु उपजती तथा विनशती रहती है । पर्यायोंकी उत्पत्ति विनाशका भी अनुभव सदा ही अबाध्य होता । यद्यपि शुक्ल शंखमें पीलेपनेका भी कभी अनुभव होजाता है परंतु वह अनुभव जिस प्रकार झूठा है उसी प्रकार सभी पर्यायोके

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