Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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यदि ऐसा कहो कि, जो ज्ञान न होवे, तो पदार्थोंका प्रकाश न होवे, इस अर्थापत्तिसे उस ज्ञानका ज्ञान हो जाता है। |भावार्थ-जैसे 'देवदत्त मोटा है और दिनमें भोजन नहीं करता है' इस स्थलमें यदि देवदत्त दिनमें भोजन नहीं करता है| तो मोटा कैसे हो रहा है ? इस प्रश्नके उत्तरमें अर्थापत्तिसे कहना पड़ता है कि, देवदत्त रात्रिमें भोजन करता है । क्योंकि, यदि ऐसा न कहें तो देवदत्तके मोटापना सिद्ध न होवेइसी प्रकार यहां भी घटपदार्थके ज्ञानके विना घटका प्रकाश नही हो सकता है और घटका प्रकाश होता ही है, इस कारण घटका प्रकाश सिद्ध करनेके लिये अर्थापत्तिसे घटज्ञानका ज्ञान हो जाता है । सो यह कहना भी ठीक नहीं है । क्योंकि, जैसे ज्ञान ज्ञापक ( जनानेवाला ) है, उसी प्रकार अर्थापत्ति भी ज्ञापक है| अतः खयं अज्ञात (नही जानी हुई ) वह अर्थापत्ति भी ज्ञानको नहीं जना सकती है । और यदि दूसरी अर्थापत्तिसे उस अर्थापत्तिका ज्ञान मानोगे तो अनवस्था और अन्योन्याश्रय दोष आवेगा; इसकारण दूसरे ज्ञानको पहले ज्ञानका प्रकाशक मानने में जो तुमको दोष आया था; वही यहां भी आगया। अतः सिद्ध हुआ कि जैसे ज्ञान अर्थोन्मुखतासे प्रतिभासता है अर्थात् अर्थका ज्ञान करता है। उसी प्रकार खोन्मुखतासे भी ज्ञान प्रतिभासता है अर्थात् ज्ञान अपने ज्ञानको भी आप ही करता है । और | ऐसा सिद्ध होनेसे ज्ञानके खसंविदितपना सिद्ध हो गया। al नन्वनुभूतेरनुभाव्यत्वे घटादिवदननुभूतित्वप्रसङ्गः।प्रयोगस्तु ज्ञानमैनुभवरूपमप्यनुभूतिर्न भवति, अनुभाव्यत्वा
द् घटवत् । अनुभाव्यं च भवद्भिरिष्यते ज्ञानं, स्वसंवेद्यत्वात् । नैवम् । ज्ञातुमा॑तृत्वेनेवानुभूतेरनुभूतित्वेनैवानुभवा त् । न चानुभूतेरनुभाव्यत्वं दोषोऽर्थापेक्षयानुभूतित्वात्स्वापेक्षया चानुभाव्यत्वात् । स्वपितृपुत्रापेक्षयैकस्य पुत्रत्वपितृ
त्ववद्विरोधाभावात् । KI शंका-यदि आप अनुभूति ( ज्ञप्ति ) को अर्थात् जाननेरूप क्रियाको अनुभाव्य ( अनुभव करने योग्य ) अर्थात् ज्ञेय
(जानने योग्य ) मानोगे तो घटादिके समान ज्ञानके भी अनुभूतिसे रहितताका प्रसंग होगा अर्थात् जैसे घटादि पदार्थ अनुभाव्य होनेसे अनुभूतिरूप नहीं है, उसीप्रकार ज्ञान भी अनुभाव्य (ज्ञेय ) होनेसे अनुभूति (ज्ञप्ति ) स्वरूप न रहेगा। विषयमें अनुमानका प्रयोग इस प्रकार है कि,-ज्ञान अनुभवरूप है तो भी अनुभूति नही है, अनुभाव्य होनेसे, घटके समान। और
१ यथा घटादेरनुभाव्यत्वेनाननुभूतित्व नास्ति तथा अनुभूतेरप्यनुभाव्यत्वेनाननुभूतित्वप्रसङ्गात् । अतोऽनुभूतेरनुभाव्यत्वं न स्वीकार्यमिति भावः।
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