Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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साद्वादम.
॥१४६॥
पदार्थको जिस प्रकार सिद्ध करता है उस पदार्थको दूसरा शास्त्र उस प्रकारसे अन्यथा ही साधता है । इस प्रकार जब शास्त्रोमें राजै.शा. परस्पर खयं ही प्रमाणता नही दीखती है तो वे दूसरे पदार्थोंका निश्चय किस प्रकार करासकते है ? इस प्रकार प्रमाता जो आत्मा माना गया है उसकी सिद्धि किसी प्रमाणसे भी नही होनेके कारण प्रमाता कोई वस्तु नहीं है। - प्रमेयं च वाह्योऽर्थः । स चानन्तरमेव वाह्यार्थप्रतिक्षेपक्षणे निलोठितः।प्रमाणं च स्वपराऽवभासि ज्ञानम् । तच्च प्रमेयाऽभावे कस्य ग्राहकमस्तु? निर्विषयत्वात् । किं चैतदर्थसमकालं तद्भिन्नकालं वा तद्ग्राहकं कल्प्येत ? आद्यपक्षे त्रिभुवनवर्तिनोऽपि पदार्थास्तत्राऽवभासेरन्; समकालत्वाविशेषात् । द्वितीये तु निराकारं साकारं वा तत्स्यात् ? प्रथमे प्रतिनियतपदार्थपरिच्छेदानुपपत्तिः। द्वितीये तु किमयमाकारो व्यतिरिक्तोऽव्यतिरिक्को वा ज्ञानात् ? अव्यतिरेके ज्ञानमेवायम् । तथा च निराकारपक्षदोपः। व्यतिरेके यद्ययं चिद्रूपस्तदानीमाकारोऽपि वेदकः स्यात् । तथा चायमपि निराकारः साकारो वा तद्वेदको भवेदित्यावर्त्तनेनानवस्था । अथाचिद्रूपः किमज्ञातो ज्ञातो वा तज्ज्ञापकः स्यात् ? प्राचीने विकल्पे चैत्रस्येव मैत्रस्यापि तज्ज्ञापकोऽसौ स्यात् । तदुत्तरे तु निराकारेण साकारेण वा ज्ञानेन तस्यापि ज्ञानं स्यादित्याद्यावृत्तावनवस्थैवेति ।
बाह्य पदार्थको प्रमेय कहते है। परंतु बाह्य पदार्थका विचार हालहीमें बाद्य पदार्थका खंडन करते समय करचुके है। अर्थात् उस प्रमेयका खंडन अभीहाल करचुके है। प्रमाण उसको कहते है जो अपना तथा परका जतानेवाला हो । परंतु जब प्रमेयरूप बाह्य पदार्थ ही कोई वस्तु नहीं है तो विषय न रहनेपर प्रमाण जताबेगा किसको ? और यदि प्रमेय तथा प्रमाण माने भी जाय तो क्या जब पदार्थ उत्पन्न होता है उसी समय प्रमाण उसको जानता है अथवा किसी दूसरे समय : यदि कहो कि पदार्थ जब उत्पन्न होता है तभी प्रमाण उस पदार्थको जानता है तो तीनो लोकमें होनेवाले सभी पदार्थ उस ज्ञानमें प्रतिभासित होने चाहिये । क्योंकि, समकालीन होनेसे जिस पदार्थको जिस समयमें जिस प्रकार जो ज्ञान जानता है उसी प्रकार से और भी पदार्थ जो उसी समय उत्पन्न होते है वे सर्व उस ज्ञानके समकालीन है। यदि कहो कि पदार्थ उत्पन्न होजानेके ३ ॥१४६॥ अनंतर प्रमाण उस पदार्थको जानता है तो क्या जिस ज्ञानसे पदार्थ जाना जाता है वह ज्ञान निराकार ही है अथवा उसका कुछ ६ आकार भी है ? यदि वह ज्ञान निराकार ही है तो जिसका कुछ आकार ही नहीं है उस ज्ञानमें प्रत्येक पदार्थका निश्चय होना है