Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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जिनका ऐसे वे पदार्थ उस पदार्थके निज वरूपसे भिन्न नही किये जा सकते है। और फिर इसलिये एक पदार्थका विशेष खरूप जाननेपर सब पदार्थों के खरूपका ज्ञान होजानेसे प्रमाता ( जाननेवाले ) के सर्वज्ञपना सिद्ध होने लगेगा। और यह अर्थात एक विशेषके जाननेसे सर्वज्ञताका होना प्रतीति करनेयोग्य अथवा युक्तिसंगत नहीं है । व्यावृत्तिका अर्थ निषेध है । और वह निषेध अभावरूप होनेसे तुच्छ है, इस कारण जैसे आकाशका पुष्प अभावरूप होनेसे प्रतीतिके गोचर नहीं होता है, उसी प्रकार यह व्यावृत्ति भी प्रतीतिके विषयपनेको कैसे प्राप्त हो सकती है। 9 तथा येभ्यो व्यावृत्तिस्ते सद्रूपा असद्रूपा वा ? असद्रूपाश्चेत्तर्हि खरविषाणात् किं न व्यावृत्तिः ? सद्रूपाश्चेत्सा
मान्यमेव । या चेयं व्यावृत्तिविशेषैः क्रियते सा सर्वासु विशेषव्यक्तिष्वेका अनेका वा ? अनेका चेत्तस्या अपि विशेषत्वापत्तिरनेकरूपत्वैकजीवितत्वाद्विशेषाणाम् । ततश्च तस्या अपि विशेषत्वान्यथानुपपत्तेावृत्त्या भाव्यम् ।। व्यावृत्तेरपि च व्यावृत्तौ विशेषाणामभाव एव स्यात्। तत्स्वरूपभूताया व्यावृत्तेः प्रतिपिद्धत्वादनवस्थापाताच्च । एका चेत्सामान्यमेव संज्ञान्तरेण प्रतिपन्नं स्यादनुवृत्तिप्रत्ययलक्षणाऽव्यभिचारात् । किं चामी विशेपाः सामान्याद्भिन्ना अभिन्ना चा? भिन्नाश्चेन्मण्डकजटाभारानुकाराः। अभिन्नाश्चेत्तदेव तत्स्वरूपवत् । इति सामान्यैकान्तवादः।। | तथा जिन पदार्थों से व्यावृत्ति की जाती है वे पदार्थ सत्रूप है वा असत्रूप हैं ? यदि कहो कि वे पदार्थ असतूप है। अभावरूप गधेके सीगसे भी व्यावृत्ति क्यों नहीं होती है ? यदि कहो कि, वे पदार्थ सतरूप हैं; तो वे पदार्थ सामान्यरूप ही हुए। और विशेष पदार्थ जिस व्यावृत्तिको करते है, वह व्यावृत्ति सब विशेष व्यक्तियोंमें एक ही है ? अथवा अनेक है ? यदि कहो कि, अनेक है, तो वह न्यावृत्ति भी विशेषरूप ही हुई। क्योंकि विशेषोंके अनेकरूपपना ही एक जीवित है अर्थात् अनेकरूपता ही विशेषोंका खरूप है । और तब उस व्यावृत्तिकी भी विशेषरूपताके सिवाय अन्यप्रकार सिद्धि न होनेसे अर्थात् व्यावृत्ति विशेषरूपा सिद्ध होनेसे व्यावृतिसे भी अन्य व्यावृत्ति होनी चाहिये । और यदि व्यावृत्तिकी भी व्यावृत्ति हो तो विशेपोंका अभाव ही होजायगा। क्योंकि विशेषस्वरूप जो व्यावृत्ति है उसका प्रतिषेध ही विशेषोका अभाव है । और अनवस्था दोषकी भी प्राप्ति होती है। यदि कहो कि व्यावृत्ति एक है तो दूसरे नाममात्रसे तुमने सामान्यको ही खीकार किया। क्योंकि, अनुवृत्तिप्रत्ययरूप जो सामान्यका लक्षण है वह यहां घट जाता है, व्यभिचार नहीं है। यहांपर और भी विशेप कथन यह है कि,ये विशेष सामान्यसे भिन्न है? कि अभिन्न है? यदि कहो