Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
साध्य नहीं है इसलिये साध्यके अभावमें भी हेतु रहनेसे व्यभिचार अथवा अनेकान्तनामक दोप आता है। क्योंकि गन्धद्रव्य
भी नासिकामें घुसते अथवा निकलते पासकी मूंछोको कंपाता नही है। पांचवा हेतु असिद्ध है। कैसे सो कहते है। हमलोगोंके भी सागोचर होनेसे शब्द आकाशका गुण नही होसकता है । जो पौद्गलिक होता है वही हमलोगोंकी इंद्रियोंके गोचर होसकता
है । जैसे रूप, रस, गन्ध, स्पर्श । इस प्रकार शब्द पौगलिक सिद्ध होनेसे सामान्यविशेपात्मक है। | न च वाच्यम् “ आत्मन्यपौद्गलिकेपि कथं सामान्यविशेषात्मकत्वं निर्विवादमनुभूयते” इति; यतः संसार्यात्मनः प्रतिप्रदेशमनन्तानन्तकर्मपरमाणुभिः सह वह्नितापितधनकुट्टितनिर्विभागपिण्डीभूतसूचीकलापवल्लोलीभावमापन्नस्य कथंचित्पौगलिकत्वाभ्यनुज्ञानादिति । यद्यपि स्याद्वादवादिनां पौद्गलिकमपौद्गलिकं च सर्व वस्तु सामान्यविशेषात्मकं तथाप्यपौद्गलिकेषु धर्माधर्माकाशकालेषु तदात्मत्वमाग्दृशां न तथा प्रतीतिविपयमायाति ।
पौद्गलिकेषु पुनस्तत्साध्यमानं तेषां सुश्रद्धानम् । इत्यप्रस्तुतमपि शब्दस्य पौगलिकत्वं सामान्यविशेषात्मकत्वसाध|| नायोपन्यस्तमिति ।
“ यदि पुद्गलमें ही सामान्यविशेषात्मकपना है तो पुद्गलरूप न होनेपर भी आत्मामें सामान्यविशेषात्मकपना क्यों निर्विवाद झलकता है" यह प्रश्न करना ठीक नहीं है। क्योंकि, जैसे अग्निसे तपाने तथा घनोसे कूटनेपर अनेक सूइयोका समूह एक पिडरूप होजाता है तैसे संसारी आत्माके प्रत्येक प्रदेशमें योग, कषायोंके वश प्रत्येक समयमें जो अनंतानंत कर्मपरमाणु बंधको प्राप्त होते हैं उनके साथ एकपना होनेसे वह आत्मा भी कथंचित् पौद्गलिक ही गिना जाता है । यद्यपि स्याद्वादी पौगलिक पृथ्वी जलादिक तथा अपौद्गलिक धर्म, अधर्म, आकाश, काल इन दोनो ही प्रकारके द्रव्योंको सामान्यविशेषात्मक मानते है तो भी अल्पज्ञानी जीव अपौद्गलिक पदार्थों में सामान्यविशेषात्मकपना भलेप्रकार नही समझ सकते है। पौगालिक पदार्थों में तो यदि सामान्यविशेषका विचार किया जाय तो भलेप्रकार समझ सकते है। इसलिये शब्दको सामान्यविशेषात्मक सिद्ध करनेके अभिप्रायसे ही शब्दमें पुद्गलपना विना प्रकर्ण भी सिद्ध किया है।
अत्रापि नित्यशब्दवादिसंमतः शब्दैकत्वैकान्तोऽनित्यशब्दवाद्यऽभिमतः शब्दानेकत्वैकान्तश्च प्राग्दर्शितदिशा १ जो हेतु दूसरे अनुमानसे वाधित होसकै वह असिद्ध है।