Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
परमाणुओंके संचयरूप स्थूल पदार्थोंकी सिद्धि कहना केवल कहनेमात्र ही है। और भी दूसरा दोष यह है कि स्थूल पदार्थ अनेक परमाणुरूप अवयवों में रहनेवाला माना है; परंतु वे अवयव यदि परस्पर विरोधी है तो विरुद्धधर्मवाले उन अनेक परमाणुओंसे मिलकर एक स्थूल अवयवी पदार्थ कैसे बन सकता है ? क्योंकि उसके प्रत्येक अवयवोमें तो परस्पर जुदे जुदे रहनेका खभाव विद्यमान है। उन अवयवोंको परस्पर अविरोधी कहना तो सर्वथा प्रतीतिबाधित है। क्योंकि; एक ही अवयवीमें| कोई परमाणु चंचल है, कोइ अचल है, कोई लाल है, कोई सफेद है, कोई ढके हुए है और कोई खुले हुए है इत्यादि अनेक || परस्पर विरोधी धर्मवाले एक दूसरेके खभावसे सर्वथा प्रतिकूल दीखते हैं इसलिये उन सवोमें परस्पर विरोध ही प्रतीत होता है। | अपि चासौं तेषु वर्तमानः कात्स्न्र्येनैकदेशेन वा वर्तते? कात्स्न्यून वृत्तावेकस्मिन्नेवावयवे परिसमाप्तत्वादनेकावयववृत्तित्वं न स्यात्प्रत्यवयवं कात्स्न्येन वृत्तौ चावयविवहुत्वापत्तेः। एकदेशेन वृत्तौ च तस्य निरंशत्वाभ्युपगमवाधः || सांशत्वे वा तेंऽशास्ततो भिन्ना अभिन्ना वा? भिन्नत्वे पुनरप्यनेकांशवृत्तेरेकस्य कात्स्न्यैकदेशविकल्पानतिक्रमादनवस्था । अभिन्नत्वे न केचिदंशाः स्युः। इति नास्ति वाह्योर्थः कश्चित् । किन्तु ज्ञानमेवेदं सर्वं नीलाद्याकारेण प्रतिभाति । __ स्थूल अवयवीरूप बाह्य पदार्थ माननेमें और भी दोष दिखाते है।-अवयवीरूप बाह्य पदार्थ माननेवालेसे बौद्ध पूछ कि अवयवीरूप स्थूल पदार्थ जो परमाणुरूप अवयवोमें ठहरता है वह क्या अपने एक एक अवयवमें पूर्ण आकारसे ठहरता है अथवा उसका थोड़ा थोड़ा हिस्सा एक एक अवयवमें ठहरता है ? यदि एक एक अवयवमें समूचा वर्तता है तो समूचा आकार तो एक अवयवीका एक ही है इसलिये अपने एक ही अवयवमें रह सकेगा; सभी अवयवोमें उसका रहना मानना असंभव है। और यदि थोड़े समयके लिये यह भी मानलिया जाय कि एक अवयवी भी अपने सभी अवयवोमें समूचा समूचा रहता है तो वे सभी अवयव प्रत्येक अवयवीरूप ही मानने चाहिये । अर्थात् अवयव तो उसीको कह सकते है जो किसी पदार्थका || छोटासा हिस्सा हो । जिसमें पूरा स्थूलाकार वर्तता हो वह अवयव कैसा? वह तो अवयवी ही है। और अवयवी तथा छूटे छूटे समूहरूप परमाणुओंमें अंतर यही है कि अवयवी तो अनेक परमाणुओंका समूह होकर भी निरंश एक समझा जाता है परंतु छूटे परमाणुओंका ढेर एक होनेपर भी सब परमाणु जुदे जुदे रहते है । इसलिये यदि एक अवयवीका अपने एक एक अवयवमें| रहना पूरा पूरा न मानकर एक एक हिस्सेका माना जाय तो उसमें अंशोंकी कल्पना होनेसे उसको निरंश एक अवयवी नही |