Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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राजै.शा.
साद्वादमा नहीं जान सकता है; अतः यदि तुम (वैशेषिक) आत्माको ज्ञाता ( पदार्थोंका जाननेवाला ) मानना चाहते हो तो पहले आत्माको
चैतन्यखरूप ( ज्ञानरूप ) खीकार करो।।
ननु ज्ञानवानहमिति प्रत्ययादात्मज्ञानयोर्भेदः । अन्यथा धनवानितिप्रत्ययादपि धनधनवतोर्भेदाभावानुषङ्गात्। तदसत् । यतो ज्ञानवानहमिति नात्मा भवन्मते प्रत्येति जडत्वैकान्तरूपत्वात् । घटवत् । सर्वथा जडश्च स्यादात्मा ज्ञानवनिहमितिप्रत्ययश्च स्यादस्य विरोधाऽभावात् । इति मा निर्णैषीः तस्य तथोत्पत्त्यसम्भवात् । ज्ञानवानहमिति हि प्रत्ययो नाऽगृहीते ज्ञानाख्ये विशेषणे विशेष्ये चात्मनि जातूत्पद्यते । स्वमतविरोधात् । “ नागृहीतविशेषणा विशेष्ये बुद्धिः” इति वचनात् ।
शंका-'मै ज्ञानवान हूं' इस प्रत्ययसे आत्मा और ज्ञानके भेद सिद्ध होता है । क्योंकि; यदि इस प्रत्ययसे आत्मा और / ज्ञानके भेद न होवे तो ' मै धनवान हूं' इस प्रत्ययसे धन और धनवान इन दोनोंके भेदके अभावका प्रसंग होगा। भावार्थवैशेषिक अब यहांपर ऐसा कहते है कि, यदि ' मैं ज्ञाता हूं' इस पूर्वोक्त प्रत्ययसे आत्मा तथा ज्ञानके भेद सिद्ध नहीं होता है; का तो अस्तु मत हो; परन्तु ' मै धनवान हू' इस प्रत्ययसे जैसे धनके और धनवानके भेद प्रतीत होता है, उसी प्रकार 'मैं ज्ञानवान हूँ' इस प्रत्ययसे आत्मा और ज्ञानके भेद सिद्ध होता है । समाधान-यह तुम्हारा कहना मिथ्या है। क्योंकि तुम्हारे मतमें आत्मा सर्वथा जडरूप है; अत 'मै ज्ञानवान हूं' ऐसी प्रतीति नहीं कर सकता है । घटके समान अर्थात् जैसे-सर्वथा जड होनेसे घट उक्त प्रतीतिको नहीं करता है, वैसे ही आत्मा भी उक्त प्रतीतिको नहीं कर सकता है । अब कदाचित् ऐसा कहो कि
आत्मा सर्वथा जड भी है और मै 'ज्ञानवान हूं' इस प्रत्ययका धारक भी है । क्योंकि, ऐसा माननेमें कोई विरोध नहीं है । सो तिम ऐसा भी निर्णय मत करो । क्योंकि; आत्माके 'मै ज्ञानवान हूं' ऐसी प्रतीति ही नहीं होती है । कारण कि, 'मै ज्ञानवान ना। यह प्रत्यय ज्ञाननामक विशेषण और आत्मानामक विशेष्यको अहण किये बिना कदाचित् भी उत्पन्न नही होता है। क्योंकि
विशेषणको ग्रहण किये विना विशेप्यमें बुद्धि नहीं होती है' ऐसा वचन है; अत' तुम्हारे मतसे विरोध होगा। AMIL ग्रहीतयो तयोरुत्पद्यत इति चेत्-कुतस्तद्गृहीतिः। न तावत्स्वतः । स्वसंवेदनाऽनभ्युपगमात् । स्वसंविदिते ।
ह्यात्मनि ज्ञाने च स्वतः सा युज्यते । नान्यथा । सन्तानान्तरवत् । परतश्चेत्तदपि ज्ञानान्तरं विशेष्यं नागृहीते
परतश्चेत्तदपि ज्ञानापगमात् । स्वसंविदित
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