Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
का
द्वादम.
॥७८॥
सेवाके समान धर्मकी कारण है। क्योंकि देवता अतिथि और पितृजनोंके प्रीतिको उत्पन्न करती है। भावार्थ-जैसे वेदोक्त
पूजासेवाके करनेसे देवतादि प्रसन्न होते है, उसी प्रकार इस वेदोक्त हिंसासे भी देवतादि प्रसन्न होते है अतः यह वेदोक्तहिंसा y धर्मबंधकी कारण है । और वेदोक्त हिंसासे देवतादिके प्रीति उत्पन्न नहीं होती है। ऐसा न कहना चाहिये अर्थात् वेदोक्तहिसासे
देवतादि प्रसन्न होते ही हैं। क्योंकि; कारीरीनामक यज्ञको आदि ले जो यज्ञ है; उनके अपने द्वारा सिद्ध करने योग्य वृष्टिआदि ५ फलमें जो अव्यभिचारित्व ( सफलता ) हैवह उन यज्ञोंसे प्रसन्न किये हुए देवोंके अनुग्रहरूप हेतुवाला ही है अर्थात् कारीरी-धू o आदि यज्ञोंके करनेसे जो वृष्टि ( वर्षा ) आदि फलोंकी प्राप्ति होती है; वह उन यज्ञोंद्वारा प्रसन्न किये हुए देवोंकी कृपासे ही होती ॐ है। इसी प्रकार त्रिपुरार्णवनामक एक प्रकारके ग्रन्थमें कहे हुए बकरे तथा जांगल ( बनके पशु ) के होमसे दूसरेके राज्यको
वशमें करना है; वह भी उस होमसे अनुकूल किये हुए देवताओंके प्रसादसे ही सिद्ध होता है । और मधुपर्कपूजामें दही, और सहत आदिके भक्षणसे उत्पन्न हुई अतिथिप्रीति (पाहुणेकी प्रसन्नता) तो प्रत्यक्षमें ही देखनेमें आती है । तथा उन २ उपयाचना किये
हुए श्राद्ध आदिके करनेसे प्रसन्न हो गया है आत्मा जिनका ऐसे अर्थात् जो २ पितर जिस २ श्राद्धकी याचना करें; उस २ की श्राद्धके करनेसे प्रसन्न हुए वे पितर अपने संतानकी वृद्धि करते है अर्थात् श्राद्धकर्ताके पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र आदि उत्पन्न करते है। यह y भी प्रत्यक्षमें देखा जाता है। और आगम भी इस विषयमें प्रमाण है । वह निम्न लिखित प्रकारसे है । देवोंकी प्रीतिके लिये अश्वमे
धयज्ञ (जिसमें घोडा मारा जावे ऐसे यज्ञ, ) को तथा गोमेधयज्ञ आदिको कहनेवाला आगम प्रसिद्ध ही है । " आये हुए श्रोत्रिय (वेदपाठी) के लिये बड़े बैलको अथवा बडे बकरेको प्रकल्पन करे अर्थात् मारे ।" इत्यादि आगम अतिथि ( पाहुणे) की प्रीतिके लिये हिंसा करनेका उपदेश देता ही है । तथा पितरोंकी प्रीतिके लिये “मत्स्य (मांछले) के मांससे दो महिने तक, हिरणके मांससे तीन महिने तक मेष ( माँढे) के मांससे चार महिने तक और शाकुन (पक्षिविशेप ) के मांससे पांच महिनेतक पितृजन तृप्त रहते है अर्थात् यदि उक्त जीवोंके मांससे श्राद्ध किया जावे तो पितृजन उक्त समयपर्यन्त किसी पदार्थको खानेकी ॐ इच्छा नहीं करते है। १।" इत्यादि कथन करनेवाला आगम है। ___ एवं पराभिप्राय हृदि संप्रधार्याचार्यः प्रतिविधत्ते । न धर्मेत्यादि । विहितापि वेदप्रतिपादितापि आस्तां तावद- विहिता हिंसा प्राणिप्राणव्यपरोपणरूपा न धर्महेतुर्न धर्मानुवन्धनिवन्धनम् । यतोऽत्र प्रकट एव स्ववचनविरोधः।
॥८॥